Friday 24 August 2018

ACTIVITIES TO PLAY WITH COLOURS ( EASY DIY FOR 12 TO 18 MONTH OLD )

Hello Everyone, Namaste , hope u all are good and doing well. Definitely enjoying motherhood too. This phase is full of sweet memories and fun activities. Being a mommie we forget all the entertainment and activities except entertaining our kids. What we all need is our baby and nothing else. We create memories we used to save the dates whenever our kid does something new like sit,stand or walk.We used to click these pictures and create memories. Another form of creating memories is having kids foot and hand prints which are really so cute and great source of memories. Anvi is a naughty toddler, all the time I want her to indulge in any kind of activities and you know nothing is better than colors..
EASY DIY FOR TODDLERS 12 to 18 months is the time when our toddler started exploring their tiny world. They walk,run,sit,play,sing and dance, they climb on the bed and stairs.They push or pull etc etc etc.... Anvi love the colours. Most of the time we play with colours and she enjoy the most. This is little messy but we love it.When she became one year old we have taken her foot prints on her own scrap book. That time I came to know that she love colors and enjoyed a lot. So many parents are too eager to capture their kids foot and hand prints which really become an awesome memory. Have you ever think that you can make beautiful pictures and cards from these foot and hand prints.These foot prints can somehow decorate your home and you can gift them to someone on their special day. These drawings can decorate your walls and look really beautiful.Yes guys I am talking about foot and hand prints craft and art. It could be great for a keepsake for parents, grandparents and relatives etc.
FIRST ACTIVITY FOR OUR MUNCHKINS As kids are exploration always want to touch, eat, feel whatever they have or found. My kiddo is just like yours.She tastes everything wether itz a news paper, color,cookies or mud. Yes, only you can make them eat healthy. Firstly we make a bird from kids' footprints. So we need some stuff which I am mentioning here. MATERIAL USED For this card we should use only natural or edible colors because kids always want to taste whatever they have. I used Turmeric and edible food color.You can use Beet root juice, coffee powder, coriander or mint leaves as these are the good source of color. Another thing I need is A4 size plain paper, A bow pr ribbon, Red color lipstick for beak and black sketch to draw birds feet, a black bindi for making eyes.
HOW TO MAKE You can start this DIY by dipping your child's foot into yellow color made with turmeric into that White paper (You can use different colors too). Take some of the color in ur thumb and make birds head. Use red lipstick and made beak.Later on when these prints got dry make birds eye with the black bindi. Grab a pretty ribbon cut and paste into his neck and tie a bow. You can make his feet too with black eyeliner.
So your footprint bird is ready. You can paste that into a card board or frame that. It will become a life time memory.
SECOND ACTIVITY FOR TODDLERS
Another DIY with art and colour is to make a foot prints flower. Footprint flower is such a special idea. You can gift that flower to someone on special occasion. As toddler always love colors and love to paint with their feet. Well my daughter too love paint and colors she is too small to paint her own so that I used these foot prints for creating memories. Painting with children is quiet hard because they never sit properly and always ready to move. So that I let my baby sit on a chair and then I take her footprints. MATERIAL USED Orange food color, Green color,pink lipstick, plain white A4 size paper.. HOW TO DRAW I painted her feet when she sit on a chair and then I our one door and dip into the color and paste into the paper. Done same with the another door. She just love this fun DIY activity as that the time she was singing. After that I draw leaves and stem with green color and decorate it with pink colour lipstik.
I love Anvi's footprints on this card. This is an awesome memory.Later on I ll gift that card to her masi on her birthday. Which could be a special gift for her. Most of the time we make these types of the drawing and frame. These drawings are the best part of our Parenting journey. Hope you all like this activity. Thanku guys! This post is a part of the DIY blog train I thanked Smidha who introduced me very well on her blog. She wrote an awesome blog which is a must read for all you can read her blog at @http://mytinytigger.com/2018/08/23/diy-for-sensory-development/ Next of the train this is a mommie Amitoj Kaur who is a dentist by profession and a mother of 4 year boy. On the upcoming series of this blog train she is going to share some of the DIY activities which she does with her kid.Just check out her blog @www.tryingtobeasupermom.wordpress.com and enjoyed her articles. Here we all mommies unite to share different DIY that you could do with your kids and create memories too.. I hope u all like our effort and give appraisal .. Me Mommie of a Magical Baby saying Bye to all. Hope you like our efforts..
Hosted by- @lovethatyoucanbuy,@mamamusings,@momzdiary and @oneupbaby Sponser-@boredombustersbusybags

Saturday 4 August 2018

स्तनपान बच्चे के लिए वरदान

कृति ने हाल ही में एक सुंदर से राजकुमार को जन्म दिया। एक अत्यंत ही निम्न वर्ग से ताल्लुक रखने वाली कृति के ससुराल वाले गांव के रहने वाले है। उन लोगो ने सामान्य प्रसव के लिए हर उपाय किये लेकिन समय पर ही बच्चे की धड़कन न मिलने पर डॉक्टरों ने ऑपेरशन की सलाह दी तो कृति माँ बन पाई। पांच घंटे के बाद जब बच्चे को कृति की गोद मे दिया गया तो ससुराल वालों ने ये कह कर मना कर दिया कि आपरेशन कर बाद शरीर गंदा हो जाता है इसलिये कृति को बच्चे को दूध पिलाने से बचना चाहिए। उन्होने नवजात को बोतल से दूध पिलाया और कृति सिर्फ देखती रह गयी। तीन दिनों के बाद जब कृति चलने लायक हुई तो चोरी से अपने बच्चे को स्तनपान करा पाई। ये घटना सिर्फ कृति के साथ ही नहीं कितनी ही माएँ है जो कुछ बकवास सोच और घटिया रीति रिवाजों के नाम पर अपने बच्चे को प्रसव के बाद स्तनपान कराने से वंचित रह जाती है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रसव के एक घंटे के अंदर केवल 42 प्रतिशत बच्चे ही मां का पहला गाढ़ा दूध पीते है जबकि शेष बच्चे इस अमृत से आज भी वंचित रहते है। इतना ही नहीं सरकार के प्रचार के बाद भी लोगो मे स्तनपान को लेकर जागरूकता कितनी कम है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है कि जन्म के 6 माह तक भारत मे केवल 55 प्रतिशत बच्चे ही स्तनपान कर पाते है। बाकी बच्चे गाय के दूध या फिर फार्मूला मिल्क द्वारा ही अपर्याप्त पोषण पाते है। आज कल की लाइफस्टाइल में माँ किन्ही कारणों से छह माह तक भी अपने बच्चे को स्तनपान नही करवा पाती। इसकी भी कई सारी वजह है , कभी कभी माँ को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता जिसके कारण भी कमजोरी की वजह से वो अपने बच्चे को स्तनपान नही करवा पाती तो कभी कभी शरीर खराब न हो जाये इस वजह से भी महिलाये स्तनपान से बचना चाहती है। अक्सर देखा जाता है कि को पाउडर वाला दूध जो आसान होता है बनाने में भी और पिलाने में भी ,अधिकतर महिलाएं बच्चो के लिए पाऊडर वाले दूध पर निर्भर होती है।
स्तनपान कराने में उत्तरप्रदेश सबसे अधिक पिछड़ा जिला है जहाँ मात्र 25.4% बच्चे ही जन्म के तुरंत बाद मां का गाढ़ा पीला दूध पी पाते है जिसमे सबसे ज्यादा रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है। स्तनपान में पिछड़े जिलो में राजस्थान दूसरे नम्बर पर है जहाँ मात्र 28.5 % नवजात ही जन्म के तुरंत बाद स्तनपान करते है । इतना ही नहीं स्तनपान कराने में उत्तराखंड, पंजाब और दिल्ली भी काफी पिछड़ा है। अब इसे लोगो का पिछड़ापन कहे या सोच का ,जन्म के तुरंत बाद और छह माह तक भी बच्चो को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पा रहा जो कि हर बच्चे का हक़ है। कभी कभी परिवार के दबाव में आ कर भी महिलाये बच्चो को 6 माह से पूर्व ही दाल चावल इत्यादि देना शुरू कर देती है जो किसी भी तरह से बच्चे के लिए ठीक नहीं होता। कभी कभी नौकरीपेशा महिलाये नौकरी की वजह से भी बच्चों को 6 माह तक भी पर्याप्त स्तनपान नहीं कराती तो कभी सामाजिक जगहों पर लोक लाज के भय से वो ऐसा नहीं कर पाती और बोतल से दूध पिलाना अधिक आसान समझती हैं। स्तनपान हर बच्चे का हक़ क्यों है? इसका जवाब इस बात से ही लग जाना चाहिए कि बच्चा जब इस दुनिया मे आता है तो उनके अंदर रोगों से लड़ने की क्षमता बहुत ही कम होती है। आस पास के वातावरण और अस्पताल में तरह तरह के लोगो के छूने से बच्चे में कितने ही तरह के कीटाणु पहुचते है जो उन्हें बीमार कर सकते है। अगर जन्म के 1 घंटे के अंदर ही मां बच्चे को स्तनपान करवाती है तो बच्चे को सभी पोषक तत्व तो मिलते ही है साथ ही रोगों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है। स्तनपान क्यों और कब तक - स्तनपान को ले कर लोगो के बीच बहुत सी भ्रांतियां है। कोई ये समझता है कि माँ का दूध बच्चे के लिए काफी नहीं होता तो कोई सोचता है बच्चे को दूध के साथ ही साथ पानी भी देना चाहिए ताकि बच्चे को पानी की कमी ना हो पाए। ये सभी मिथ पूरी तरह से गलत है। अगर जन्म से छह माह तक बच्चा केवल स्तनपान कर रहा है तो वही उसके लिए पूरा पोषण है। माँ के दूध में सभी तरह के गुण मौजूद है । बच्चे को गर्भ में माँ द्वारा खाये हुए भोजन से ही पोषण मिलता है और जब वह दुनिया भर आता है तो उसका पाचन तंत्र इतना मजबूत नहीं होता कि वह किसी भी प्रकार का भोजन पानी या घुट्टी को पचा सके। बचचा सिर्फ माँ का दूध ही पचा पता है और उसी से सारे पोषक तत्व ग्रहण करता है। 6 माह तक बच्चे को यदि स्तनपान कराया जाता है तो उसे किसी भी अतिरिक्त खाने की जरूरत नहीं रह जाती। अक्सर देखा जाता है कि किसी शारीरिक कमी की वजह से या कमजोरी के कारण कई माएँ बच्चो को स्तनपान नहीं करवा पाती ऐसे में वो बोतल का सहारा लेती है । किसी कमजोरी की वजह से स्तनपान न करवाना जायज़ है लेकिन बिना किसी वजह के बच्चे को इससे वंचित रखना तनिक भी सही नहीं होता। स्तनपान जन्म के 6 माह तक हर बच्चे का हक़ है।
as स्तनपान को लेकर भ्रांतियां - जन्म के बाद ही अक्सर लोग माँ को यह कह कर मना कर देते है कि इससे बच्चे को कोई नुकसान न हो जाये। लोग सोचते है कि माँ को अपना पहला दूध बच्चे को नहीं पिलाना चाहिये और उसे बाहर फेंक देना चाहिए। यह हमारे समाज की सबसे बड़ी कमजोरी है कि हम जो सोचते है उसे ही सच मानते है और उस सोच से बाहर कभी नहीं निकल पाते। बच्चे के लिए जनम के तुरंत बाद मां का दूध अमृत है इसे पिलाने से उसमे बीमारियों का नाश होता है और रोगों से लड़ने की क्षमता विकसित होती है। स्तनपान से बच्चे में अस्थमा और एलर्जी से बचाव होता है साथ ही कान में किसी प्रकार का संक्रमण नही होने पाता। डायरिया जिससे कितने ही बच्चे मौत के मुँह में चले जाते है उसे भी स्तनपान से ही रोका जा सकता है इससे बच्चे में दस्त के दौरान भी पानी को कमी नहीं हो पाती और वे पूरी तरह से बीमारी से लड़ पाते है। प्रत्येक बच्चे को ये दूध मिलना ही चाहिए। लोगो मे ये भ्रांतियां भी होती है कि बच्चे को 6 माह से पहले ही कुछ अनाज खिलाते रहना चाहिए जो कि पूरी तरह से गलत है। बच्चे का पाचन तंत्र कमजोर होता है जिस कारण वह अनाज को पचा नहीं पाता और बीमारियों का शिकार हो जाते है जिसके बाद वे उल्टी और दस्त के शिकार हो जाते हैं। संयुक्त परिवारों में अक्सर देखा जाता है कि लोग घर के काम करवाने के लिए बच्चो को बोतल का दूध पिलाने लगते है ताकि माँ अपना सारा काम निपटा सके ऐसे में बच्चे को बोतल से दूध पीना सरल लगता है और वह स्तनपान छोड़ देता है जो को पूरी तरह से गलत है। परिवार के हर सदस्य का यह फ़र्ज़ बनता है कि वह स्तनपान के लिए पूरा समय माँ को दे जिससे बच्चे में किसी प्रकार की कोई कमी न होने पाए। काम के चककर में लोग ये भूल जाते है कि बच्चे के स्वस्थ रहने में ही सभी की खुशी है। आज कल की लाइफ स्टाइल में नौकरी पेशा महिलाये अपने फिगर हो ले कर चिंतित हो जाती है कि स्तनपान से उनकी शारीरिक बनावट खराब हो सकती है जबकि ऐसा बिल्कुल ही गलत है। स्तनपान से जच्चा का शरीर जो कि गर्भावस्था में बढ़ जाता है पुरानी अवस्था मे आ जाता है । स्तनपान से शरीर की चर्बी जल्दी निकलती है और महिलाएं पुराने फिगर में फिर से आ जाती हैं। एक बार स्तनपान करवाने से 8 किलोमीटर दौड़ने जितनी कैलोरी निकलती है जिससे शरीर स्वस्थ रहता है। स्तनपान से लाभ स्तनपान से बच्चे को पूर्ण पोषण मिलता है उसके शरीर मे प्रोटीन,वसा और विटामिन की पूर्ति होती है साथ बच्चो में सूखा रोग जो विटमिन डी की कमी से होता है उसकी कमी भी स्तनपान से दूर हो जाती है। बच्चे को हर घंटे पर स्तनपान करवाते रहने से उसे पानी की कमी नहीं होने पाती क्योंकि माँ के दूध में 70%पानी हो होता है जिसके बाद किसी तरह के तरल पदार्थ की जरूरत नहीं होती। बच्चे में माँ के दूध से कई तरह की बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है। सर्दी जुकाम और डायरिया के दौरान बच्चे को स्तनपान करवाने से उनमें रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है इस दूध में मौजूद एंटीबॉडीज शरीर को संक्रमण से बचाते है । यह भी सही है कि जिन बच्चो ने जितने लम्बे समय तक स्तनपान किया हो उनमें मानसिक विकास तेजी से होता है और वो और बच्चों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान भी होते है | स्तनपान न केवल बच्चे के लिए अपितु माँ की सेहत के लिए भी सही होता है क्योंकि बच्चे के जन्म के बाद गर्भाशय से जो रक्तस्त्राव होता है वो स्तनपान के बाद कम हो जाता है | American Academy of Pediatrics के अनुसा नए बच्चे के पोषण और उसके विकास के लिए जरुरी तत्व आवश्यक होते है वो सब माँ के दूध में होते है। माँ का दूध बच्चे के लिए सुपाच्य भी होता है | माँ के दूध में बहुत से एंटीबॉडी होते है जो बच्चे को किसी भी तरह के इन्फेक्शन और बीमारी से बचाव करता है | अगर माँ बच्चे को नियम से स्तनपान करवाती है तो उसके भावनात्मक रूप से भी फायदे कई फायदे होते है। स्तनपान से बच्चा माँ के सबसे करीब होता है और माँ पर सबसे अधिक विश्वास करने लगता है। स्तनपान मां और बच्चे को भावनात्मक रूप में आपस में जोड़ता है | इस से आपके बच्चो को मौसमी बीमारियाँ जैसे जुकाम और बुखार जैसी बीमारियों से भी बचने में मदद मिलती है | 1 अगस्त से 7 अगसत को विश्व स्तनपान सप्ताह के रूप में मनाया जाता है ताकि लोगो को इसके फायदों से अवगत करवाया जा सके। मातृत्व माँ और बच्चे के लिए बेहतरीन होता है क्योंकि माँ बनना किसी भी महिला के लिए सामाजिक स्तर पर एक सम्मान की बात होती है और साथ ही उसकी जिन्दगी में एक बड़ा परिवर्तन और एक तरह से प्रकृति और से एक वरदान की तरह होता है और इसके साथ ही बहुत सारी जिम्मेदारियां होती है जो माँ बनने के बाद शुरू होती है जो उस से पहले जिनके बारे में मां ने सोचा तक नहीं होता । स्तनपान जितना आसान लगता है उतना होता नहीं है जन्म के बाद अक्सर माएँ अपने बच्चों को दूध ना पिला पाने के कारण डिप्रेशन में चली जाती है । उनहे कोई सलाह देने वाला नहीं होता ना ही वे अपनी समस्या किसी से कह पाती है। अक्सर लोग महिलाओं का मजाक भी उड़ाते है जो स्तनपान करवाने में अक्षम होती है कभी कभी वे खुद को नीचा भी महसूस करने लगती है । जबकि परिवार के सपोर्ट से वे इस समस्या से निजात पा सकती है। स्तनपान के लिए धैर्य की जरूरत है और इसी धैर्य से जितना ज्यादा बच्चा स्तनपान करेगा दूध उतना ही बढ़ेगा और अंत मे मां पूरी तरह से स्तनपान में सक्षम हो जाएगी। दोस्ती स्तनपान से जुड़े फायदे और बच्चे को इससे वंचित रखने के नुकसान से बचने के लिए परिवार बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। माँ को 6 माह तक किसी भी कारण से भी स्तनपान करवाने से वंचित न रखा जाए । सही देखभाल और खानपान द्वारा स्तनपान के बीच आने वाली हर मुश्किल से बचा जा सकता है। ‌

Thursday 8 October 2015

दुआओं में याद आएंगे....


इस दुनिया से जाते वक़्त आप दुनिया को क्या दे कर जायेंगे। नहीं नहीं सोच कर बताइए तो जरा। ह्म्म्म पहले तो आप ये ही सोच रहे होंगे की मैं इतना बेतुका सवाल क्यों पूछने लगी। वैसे सोचने वाली बात भी है हम में से कौन होगा जो अपने ही अंत के बारे में सोचेगा । ठीक भी है जो बातें दुःख दे वो सोचना ही छोड़ देना चाहिए। अच्छा चलिए एक और सवाल आपको सिर्फ सोचना भर है फ़र्ज़ कीजिये किसी दिन आप अपने ऑफिस या फिर कॉलेज को निकल रहे हो और एक तेज़ रफ़्तार ट्रक आपको टक्कर मार के निकल जाये। आप उठने तक की हालत में न हो और बेहोश किसी सड़क पर पड़े हो । आँख खुली तो अपने पाया की आप अस्पताल में हैं और आपके सारे चाहने वाले आपके होश में आने का इंतज़ार कर रहे हो । जैसे ही आप उठे सबको मानो नया जीवन मिल गया हो। कुछ समय बाद आपको पता चला कि आपकी जान बचने में डॉक्टर के अलावा एक और शख्स का हाथ है , जो इस दुनिया से जाते जाते आपको नयी जिंदगी दे कर गया ।आपको उनका हार्ट ट्रांसप्लांट किया गया है यह सोच भर ही आपकी आँखों में आंसू आ गये। आपने न जाने कितनी बार दुआओं में उस इंसान को शुक्रिया किया जिसने आपको जीवन दिया। चलिए चलिए अब सोचने से बाहर आ जाइये । ये तो सिर्फ आपको बताने के लिए था कि हम् में से हर कोई कभी भी किसी भी हालत में हो सकता है। क्युकी दुर्घटनाये हमे पता नहीं होती की कब हो जाये और शायद इसीलिए आज मेडिकल ने इतनी तरक्की कर ली है कि समय रहते हमे बचाया जा सकता है।
ऐसा ही एक और वाकिया नीलम के साथ भी हुआ। बचपन से ही नीलम देख नहीं सकती थी उसकी आँखों की रौशनी ने जिन्दगी में भी अँधेरा कर दिया था। डॉक्टर्स ने आँखों के प्रत्यारोपण की बात कही पर उसका खर्च उठाना नीलम के पिता के लिए आसान नहीं था । लेकिन किसी भले आदमी के अंग दान की वजह से नीलम को नयी आँखे मिली अब वो भी सब कुछ देख पा रही थी जो हम देख सकते है। दोस्तों ऑर्गन और आई डोनेशन आज न जाने कितने लोगो को नयी ज़िन्दगी दे रहा है लेकिन बहुत ही कम लोग आज भी आगे आ कर इसकी पहल करते हैं। ऑर्गन डोनेशन के लिए आज हर अस्पताल में डिपार्टमेंट बनाये गए है जहा जा कर हममे से कोई भी इसके लिए अप्लाई कर सकता है। हमारे देश में आज भी मृत्यु से जुडी कई भ्रांतियां है । यही नहीं हम मरने के बाद के जीवन की भी बात करते है लेकिन उसका कोई सही प्रमाण अभी तक नहीं मिल सका है। अभी कल ही मैंने ऑर्गन डोनेशन के लिए रजिस्टर किया और तब मुझे पता चला की केवल मेरे शहर में इसके लिए रजिस्टर होने वालो में मेरा नंबर केवल चौथा है। हम आये दिन विकास की बात करते है खुद को बहुत ही एडवांस बताते है फिर इनके लिए आगे क्यों नहीं आते। मुझे भी बहुत लोगो ने सराहा तो किसी ने बुरा भी कहा शायद ये महान बन्ने का जरिया हो उनके लिए या फिर मेरा पागलपन ।
कुछ भी हो मेरे जाने के बाद ही सही कीमत दुनिया जान जाएगी। दोस्तों क्या आप जानते हैं की सिर्फ हमारे भारत देश में हर साल 5 लाख से भी ज्यादा लोग अपनी जान इसलिए गँवा देते है क्युकी उनके शरीर के कुछ महत्वपूर्ण अंग काम करना बंद कर देते है । समय पर उन्हें दुसरे अंग नहीं मिल पाते और वो बचाए नहीं जा पाते। ऑर्गन डोनेशन से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहे एक सज्जन ने मुझे बताया कि देश में साल भर में करीब पांच हज़ार किडनी ही ट्रांसप्लांट हो पाती है जबकि 75000 लोगो को इसकी आवश्यकता होती है आप समझ ही रहे होंगे कितने लोग अपनी जान युही गँवा देते है। वही पचास हज़ार के करीब हार्ट और बीस हज़ार फेफड़ो की जरूरत केवल हमारे देश में पड़ती है जबकि डोनेशन के मामले में एक मिलियन में केवल 0.3 लोग ही आगे आते है। अभी बीते शनिवार को ही गुडगाँव में स्पेन, यूके और भारत के डॉक्टर ऑर्गन डोनेशन पर एक साथ आये । डी सी डी यानी कार्डिक और सर्कुलेटरी डेथ पर भारत अभी भी काफी पिछड़ा है। जागरूकता की कमी कहे या हमारी सोच हम ऑर्गन डोनेशन से कोसो दूर हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि कई बार ऐसा होता है कि बोहत ही नाज़ुक हालत में मरीज को अस्पताल लाया जाता है और कभी भी अगर 5 मिनट के लिए भी इंसान का दिल धड़कना बंद कर दे तो मरीज के वापस बचने की कोई उम्मीद नहीं होती लेकिन इस दौरान उसके बाकी अंग जैसे किडनी, लिवर , अमाशय , स्किन , कॉर्निया आदि किसी दुसरे मरीज को लगाया जा सकता है।
थोडा और विस्तार से बात करे तो ऑर्गन डोनेशन दो तरह का होता है एक जो व्यक्ति जीवित रहते करता है जैसे लीवर या किडनी का दान करना और दूसरी तरह का डोनेशन जो डेथ के बाद होता है जिसके बाद शरीर के कई अंग निकल कर दुसरे इन्सान को लगाये जाते है। इससे किसी और को फ़ायदा होता है साथ ही ये एक अमूल्य दान भी है। ऑर्गन डोनेशन से जुड़ने के लिए अपने किसी भी नजदीकी अस्पताल में जा कर हम उसके लिए रजिस्टर कर सकते है और एक नोबल काम कर सकते हैं। दोस्तों क्या आप जानते है की एक ब्रेन डेड इंसान आठ लोगो को नयी जिंदगी दे सकता है। आज भी अवेयरनेस कम है और हमारी सोच हमे इनसब कामो को करने से रोकती है । लेकिन जरा सोचिये तो सही कितना अच्छा होगा की एक और जिंदगी इस खूबसूरत दुनिया को हमारे कारण देख पायेगी। न जाने कितनी दुआओं में हमे याद किया जायेगा और एक फॅमिली हमारी वजह से मुस्कुरायेगी। अगर हम अंग दान को आगे आते है तो उसके साथ ही हमारे आस पास के लोग भी प्रेरणा लेंगे और इस मुहिम् में हमारा साथ देंगे। बात थोड़ी दुखी करने वाली है शायद गुस्सा भी आ जाये आपको मेरे ऊपर , लेकिन सच्चाई यही है की आज भी आफ्टर डेथ ऑर्गन के मामले में एक मिलियन में केवल 0.3 लोग ही आगे आते है। जागरूकता की कमी कहे या हमारी सोच हम ऑर्गन डोनेशन से कोसो दूर हैं।
डॉक्टर्स का कहना है कि कई बार ऐसा होता है कि बोहत ही नाज़ुक हालत में मरीज को अस्पताल लाया जाता है और कभी भी अगर 5 मिनट के लिए भी इंसान का दिल धड़कना बंद कर दे तो मरीज के वापस बचने की कोई उम्मीद नहीं होती लेकिन इस दौरान उसके बाकी अंग जैसे किडनी, लिवर , अमाशय , स्किन , कोनेशन में शहर के लोग काफी पिछड़े हैं , पढ़े लिखे होने के बाद भी हम पूर्वग्राहित है । हमारे पास बोहत से तर्क है अंग दान के खिलाफ । कुछ लोग कहेंगे ये मानव अंगो के व्यापार का तरीका है तो कुछ इसे धर्म और आस्था से भी जोड़ सकते है। वैसे सोचने पर कोई बंदिश नहीं लेकिन कौन है जो दुनिया से एक बार जाने क बाद वापस आया है या फिर अपने साथ कुछ ले गया हैं। बात सही नहीं पर गलत भी नहीं। अगर हमारा शरीर आठ अलग अलग लोगो को जीवन दान दे सकता है तो क्यों नहीं हम आगे आते क्यों हम बेवजह के तर्क देते है। अंत में बस इतना ही कहना चाहूंगी इस मुहिम से जुड़े और जोड़े इस दुनिया को हमारी जरूरत है और एक नोबल काम के साथ ही ये हमारी जिम्मेदारी भी है। हम सारी जिन्दगी दुसरो के लिए करते है तो जाने के बाद क्यों नहीं। अंगदान को महानतम दान कहा गया है शायद इसीलिए ऐसे महान लोगो को भगवान् कहा जाता है। उम्मीद है इसे पढने के बाद आप जरूर ही डोनर बनना चाहेंगे। पर बताइयेगा जरूर। जूही श्रीवास्तव

Thursday 28 May 2015

जी ले जरा.................

एक बार किसी कंपनी ने अपने क्लाइंट्स के लिए पार्टी रखी, पार्टी में मस्ती के लिए गेम्स भी रखे गए। कुछ पचास से साठ लोगों को गेम के दौरान ही एक कमरे में जा कर, वहां रखे गुब्बारों पर अपना नाम लिखने को कहा गया। सभी लोग बलून पर अपना नाम लिख कर हाॅल में आ गऐ। बाद में फिर मैनेजर ने उन्हें वापस रुम में जाकर अपने नाम वाला बलून ढंूढनें को कहा। इस बार तो रुम में धक्का मुक्की सा माहौल बन गया। सब एक दूसरे से लड़ने लगे। तब मैनेजर ने सभी को शांत कराते हुए कहा कि आप सब एक एक करके रुम में जाए और जिसके भी नाम का गुब्बारा मिले उसका नाम पुकार कर उसे बलून दे। सबने ऐसा ही किया और बारी-बारी से सभी को अपना बलून मिल गया। तब मैनेजर ने कहा कि हम सब इस बलून की तरह ही अपनी खुषियां ढूंढने मंे लगे हैं लेकिन असली खुषी तो दूसरों को उनकी खुषियां ला कर देने में है। वैसे हम सब ही एक दूसरे से काफी अलग है और सभी के लिए खुषियों के मायने भी अलग है उनकी वजह भी अलग है। जो चीज हमारे लिए मामूली हों, ऐसा भी हो सकता है कि किसी के लिए वो चीज ही जिंदगी की सबसे बड़ी जरुरत हो। किसी के लिए घर खरीदना एक सपना है तो किसी के लिए, उसके बच्चों का सेटल हो जाना। जिसका बचपन संघर्षो में बीता हो उसके लिए एक अदद नौकरी भी कम नहीं और जो सड़कों पर जीवन गुजार रहे है, उनके लिए सरकार की किसी आवासीय योजना की घोषणा भर आंखों में चमक ले आती है। इण्डियन खुषियां ढूंढने में कम नहीं है, हर छोटी से छोटी चीज को भी वे एन्ज्वाॅय करना बखूबी जानते हैं। रोड पर जा रहे हो तो बारात को दूर से ही देखकर थिरक लेते हैं। किसी दोस्त का बे्रकअप ही क्यों न हो उसके लिए भी हम पार्टी मांगते है। यूं तो खुषियों को कोई मकसद नहीं होता, कोई कारण भी नहीं होता। खुषी तो बस अपनों का साथ चाहती है, बिजी षिड्यूल से थोड़ा सोषल होना मांगती है।
खुषी का मतलब अच्छा महसूस करना। जब ‘आज मंै ऊपर आसमां नीचे’ या फिर ‘आज मदहोष हुआ जाए रे मेरा मन’ जैसे फिल्मी धुनों पर थिरकने लगे। यही पल भर की खुषियां आज फेसबुक का हिस्सा तो बन ही जाती है और फिर चल निकलता है लाइक्स और कमेंट्स का सिलसिला। लाइफ में अकसर खुषियां सिर्फ हमारी अपनी नहीं होती बल्कि उन दर्जनों लोगों सें भी जुड़ी होती हैं जो अपने हैं। खुषियांे का मतलब और मकसद हर किसी के लिए अलग होता है। कोई सड़क पर गोलगप्पे खा कर खुष होता है तो कोई बारिष में भीग कर। कभी खुषी अपने बच्चे की किलकारी में होती है तो कभी फैमिली की मुस्कुराहट में। इतना ही नहीं अकसर बड़ी-बड़ी खुषियां उन छोटी-छोटी बातों में छिपी होती है जिन्हंे हम कई बार एव्याइड कर जाते हैं। याद करिये लास्ट टाइम आपने पूरा दिन वो हर काम किया था जो आपको पसंद है। कब अपने बिना मम्मी की डांट खाये फुल साउंड में गाने सुने थे और तब जब अच्छा मौसम होने पर आप अकेले लांग ड्राइव पर गये थे। याद करिये वो समय जब अपने परिवार के साथ सुकून के दो पल बिताए हो। पूरे दिन आपकी फैमिली की देखभाल में लगी अपनी वाइफ या मां को एक रोज़ देकर ‘थैंक्स’ बोला था और कब उन्हें मनाने के लिए आंखों में आंसू तक ले आए। लाइफ की यही आरयनी है कि हम वो सब काम करते हैं जो हमारे अपनों को पसंद होता है, हमारी सोसाइटी को मंजूर होता है, पर वो कभी नहीं कर पाते जो हमारा दिल कहता है। भागदौड़ भरी लाइफ में फेसबुक पर तो अपडेट रहते हैं, पर फैमिली से मिलने के लिए हमारे पास समय नहीं होता। अकसर मैनें देखा है हम अपनी लाइफ से अपने पेरेन्ट्स से कंम्पलेन करते हैं कि हम ऐसे क्यांे हैं। हमारे पास वो सब क्यूं नहीं है जो और लोगों के पास है। हम उतने पैसे वाले क्यों नहीं हैं। हम उतने सुंदर क्यों नहीं जितना और लोग होते है। हमारे अंदर इतनी कमियां क्यों हैं। ये नहीं है वो नहीं है और यही सोच कर हम वो नहीं कर पाते जिसके काबिल हम सच में होते हैं।
यूहीं बेतुकी बाते सोचकर हम अपनी सोच को नेगेटिव बना लेते हैं। लेकिन जरा सोचिए तो किसी कम्पटेटिव इक्जाम में सफल न हुए तो क्या कोषिष करना छोड़ देंगे ? नौकरी नहीं मिली या सैलेरी कम है तो काम करना बंद कर देंगे, बिल्कुल भी नहीं। बजाए इसके पहले से ज्यादा मेहनत करेेंगे ताकि मजबूर होकर बाॅस प्रमोट करे। कहीं पढ़ा था कि अगर हम गरीब पैदा हुए तो ये हमारा कसूर नहीं लेकिन अगर गरीब ही दुनिया से रुख्सत हो गऐ तो ये हमारी गलती है। मिस्टर तनेजा डाइबटीज़ के मरीज़ है, जबकि मिठाईयों में उनकी जान बसती है। जब भी मिलते है. तो सभी को खुल कर मिठाई खाने की सलाह देते है। वो कहते है आप लकी हो जो सब कुछ खा सकते हो। उनकी राय सबको ही सोचने पर मजबूर करती है कि जब हम स्वस्थ्य है, सब कुछ कर सकते है, कुछ भी खा सकते है, कहीं भी जा सकते है, हम दौड़ सकते हैं, लाइफ को जी सकते हैं। तब हम क्यों दुखी होते हैं। कल क्या होगा हमें नहीं पता लेकिन जो आज है उसको तो हम जी सकते हैं। आए दिन शहर में मर्डर, स्यूसाइड और रेप की दो या तीन घटनाऐं तो न्यूज पेपर में आती ही हैं और उन्हें करने वाले कोई हिस्ट्रीषीटर नहीं बल्कि हमारे जैसे आम लोग ही होते हैं। क्या वजह होती है कि एक अच्छा खासा इंसान क्रिमिनल एक्टिविटीज़ में इन्वाल्व हो जाता है। लोगों में बढ़ रहा डिप्रेषन अकेलापन और मानसिक तनाव ही इन सबका कारण है। प्रसिद्ध मनोचिकित्सक एरौन बेक कहते हैं कि हमारे अंदर चिंता और डिप्रेषन का सबसे बड़ा कारण यही है कि हम खुद के लिए नेगेटिव हो जाते है और इसकी सबसे बड़ी वजह हम अपने आप को ही मानते हैं। हम हर तरह से खुद को कोसते हैं और पिछड़ते चले जाते हैं। कभी-कभी ऐसे में परिवार और दोस्तों से मिल रहे नेगेटिव कमेंट भी हमें अहसास कराते हैं कि हम कमजोर है। बेक बताते हैं कि इन नेगेटिव थाॅट्स से बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम अपने बेवजह के सवालों के पीछे की सच्चाई व कारण को तलाषे। यह जानने की कोषिष करे कि कब हमनें इससे भी बुरे हालातों से मुकाबला किया था और बच कर निकले थे हर उस समस्या से जो हमें परेषान कर रही थी। दोस्तों ये कांसेप्ट एकदम भी मुष्किल नहीं। हम चाहें तो अपने लाइफ के बेस्ट मूमेंट्स को याद करके किसी भी तरह की नेगेटिव सोच से लड़ सकते है। हम सब ही यूनीक है दूसरों से अलग हैं लेकिन हमारेे अंदर कुछ ऐसे स्पेषल टैलेन्ट्स भी हैं जो और लोगों में न हांे।
आज हम वर्चुअल दुनिया में इतने मगन हैं कि आस पास लोगों से खुषियां बांटना ही भूल जातेे हैं। हमें असली खुषी फेसबुक पर मिले लाइक्स से मिलती है। जरा सोचिए अगर एफबी और व्हाट्सएप न होता तो हम कहां होते, क्या कर रहे होते। अगर डेटा इतनी आसानी से न मिलता, तब भी हम अकेले न होते। कहीं नुक्कड़ पर दोस्तो का झुंड बनाकर मगन होते, पेरेन्टस के साथ सब्ज़ी खरीद रहे होते या मस्ती में गुनगुनाते यूहीं बस चलते चले जा रहे होते। बात केवल इतनी सी है कि हम वो करते ही नहीं जो असल में जरुरी होता है जो काम हमंे खुषी देता है। पल भर को ही सही सोचिएगा जरुर कि प्राॅबलम्स किसके पास नहीं होती, कौन है ऐसा जिसे कोई दुख नहीं, किसको ऊपर वाले ने परफेक्ट बनाया है। अकसर हम दूसरों को देखकर सोचते हैं कि वे कितने सुंदर है संपन्न हैं, और समझदार हैंै। लेकिन कोई दूसरा भी तो हमारे लिए ऐसा सोच सकता है। लाइफ और सिचुएषन सबकी ही अलग अलग है। किसी को रोटी खाना पसंद नही ंतो कोई धूप में खड़े होकर भीख में रोटी ही मांग रहा होता है। जिसके पास गाड़ी है वो उसकी लैविषिंग लाइफ का हिस्सा है दोस्तों के साथ मस्ती करने के लिए जरुरी है तो किसी सेल्समैन के लिए वो ही कमाई का जरिया है। मेरा मकसद ज्ञान देना एकदम भी नहीं है मैं बस यह बताना चाहती हूं कि निराष होने और हार मान लेने से भी एक बेहतर तरीका है, हालातों से लड़ना। रोना तो सबसे आसान है पर आंसुओ को संभाल कर लड़ना भी कुछ कम नहीं। अच्छे नम्बर न आना, या जाॅब न मिलना, ब्रेकअप्स और लड़ाइयां भी जरुरी हैं। जो गिर कर संभलना सिखाती है दोस्तों को पहचानना सिखाती हैं। एक नाकामी से जिंदगी से नाराज रहना सही नहीं होता। खुषियां हमारी झोली में भले ही न हो पर हमारी वजह से कोई जरुर खुष होना चाहिए। और हां, एक बात और दूसरों को खुष करते करते अपने आप को भी नहीं भूलना है। आप ही आपके सबसे इमानदार दोस्त हैं। तो, जस्ट लव एंड लिव फाॅर योर सेल्फ।
Note- All photos are taken frm Google :)

Wednesday 7 May 2014

अम्मा तेरे घरौंदे की चिड़िया मैं


                                                                                       


Railway station par paayi gyi ek maasoom
आज मैनें पहली सांस ली। यहां मां के अंदर सब कुछ नया है। नऐ लोग नऐ चेहरे लेकिन बहुत सुकून भी है। सब कुछ शांत है। मैं यहां खुद को सुरक्षित महसूस करती हूं। किसी बात की हड़बड़ी नहीं है। घर में कोई नया मेहमान आने वाला है, सबको इसकी बहुत खुषी थी। जो भी आता अपने साथ खाने को अच्छी-अच्छी चीजें भी लाता। मां तो खाना खा-खा कर ही परेषान थी। ऐसे में बहुत ज्यादा केयर मिलती है। मैं सबके सामने तो नहीं थी पर सब कुछ सुन रही थी महसूस कर रही थी। इन नौ महीनों में मैनें बहुत कुछ देखा, सुना, सीखा कई बार डर भी लगा तो कभी रोई भी। मुझे याद है जब एक गैंगरेप के बाद उन दीदी की जान चली गई। क्या-क्या झेला होगा उन्होनें। अपनी मां को कितनी बार पुकारा होगा। सोचा होगा काष बचपन की तरह ही आज भी पापा हाथ थाम पाते। घर की एक-एक चीज को याद कर रही होगी। कहने को कितना कुछ होगा पर बोल नहीं पाई होंगी। अपने पेरेन्ट्स को बताना चाहती होंगी कि वो उनसे कितना प्यार करती हैं, पर जुबान ने साथ ही नहीं दिया होगा। कितना दर्द सहा होगा। जिस बेटी को सबने इतने नाजों से पाला, उनके फूल जैसे नाजुक हाथों को जिसने थामा होगा वहीं आज थोड़ी सी जिंदगी मांग रही है। ऐसा किसी एक के साथ नहीं हुआ, आए दिन हमारे देष में लड़कियों के सपने टूटते हैं और हम कुछ भी नहीं कर पाते। यह सब सुन कर देख कर घर में सब दुखी थे। मां तो और भी ज्यादा दुखी थी। मैं थी ना उनके अंदर, चिंता थी उन्हं, उनकी बेटी यह सब ना देखे। समाज कितना क्रूर हो गया है। जिस समाज में देवी की पूजा करते हैं उन्हें फूल चढ़ाते है, वही लोग जानवर की तरह अपनी बेटियों को रखते है। ऐसी भी क्या सोच हो जाती है कि एक मासूम की जान ले लेते हैं। सच कहूं तो मां चाहती ही नहीं थीं कि मैं बाहर भी आउं। कहीं न कहीं मैं भी।


  आज गांव से दादी आईं हैं, आते ही मां से बोली पोता ही होना चाहिए। मां का मुंह बन गया। कहती भी क्या तानें कौन सुनता उनके। लड़की को कोसने के सौ कारण थे उनके पास और लड़कों की तारीफ को हजार बहाने। मेरा तो मन भी नहीं था, दादी से बात करने का, लेकिन मां ने सिखाया था, सबको रिस्पेक्ट देनी चाहिए। मां का विष्वास था, लड़कियों को सहनषील होना चाहिए। हर बुरी बात और झगड़ा एवाइड करना चाहिए। लड़कियों को तेज आवाज में नही बोलना चाहिए। गुस्सा नहीं करना चाहिए, कुछ बुरा भी लगे तो भी चुप रहना चाहिए। हमारे लिए लाखों नियम बने हैं, पर लड़कों के लिए कोई नियम क्यों नहीं बनाता।      
   मोहल्ले के षर्मा जी को ही देख लो उनका बेटा भी जो मांगता है उसे तुरंत मिल जाता वहीं उनकी बेटी के साथ ऐसा नहीं होता। बच्चों के झगड़े में गलती किसी की भी हो सॉरी हर बार बेटी ही बोलती थी। हमारे समाज मे ऐसे दोहरे नियम क्यों हैं मुझे इसका जवाब नहीं मिल रहा है। आपको पता हो तो जरूर सोचियेगा।
   मेरे बाहर आने का वक्त अब करीब आ गया था। सबको उम्मीद थी बेटा ही होगा। मुझे देखकर तो मानों सबको सांप ही सूंघ गया। मां और बुआ के अलावा कोई खुष भी नहीं था। बे-मन से झूठी बधाइयां दे रहे थे सब एक दूसरे को। मिठाई भी आई थी पर सिर्फ मामूली सी। एक परिवार की उम्मीदें जो टूटी थीं। सारी जिंदगी केयर करनी पड़ती मेरी सच भी तो है आज कल तो हर नजरें बेटियों का खाने दौड़ती हैं। यह नीचता अब मेरे साथ मेरे परिवार को भी झेलनी थी। मैं ये सब सोच ही रही थी, कि अचानक दादी पापा को ताने मारते हुए बोली-‘पैसे बचाना षुरू कर दो अब! पहले इन्हें पढ़ाओ फिर दहेज दो। पूरी जिंदगी का रोना हो गया अब तो।’ मुझे सुन कर बुरा तो नहीं लगा पर तरस जरूर आया, इस देष की हजारों ऐसी दादी पर जो खुद भी एक स्त्री होकर लड़की का सम्मान नही करतीं। सच तो यही है कि भले ही लड़कियां अंतरिक्ष पर पहुंच चुकी हो, ऐवरेस्ट फतेह कर चुकी हो। देष की राष्ट्रपति हो चाहे प्रदेष की मुख्यमंत्री, उनके लिए समाज की सोच कभी नहीं बदलेगी।

कितने ही ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सोचने की जरूरत है, कल को मैं बड़ी होउंगी, पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी करूंगी। पापा का बेटा बन कर दिखाउंगी। सोचा है बहुत कुछ करने को पर ये समाज, ये अच्छा नहीं है। मैनें देखा है जब तीन साल की हीबा को उसके ही चाचा ने रेप करने के बाद जान से मार दिया। ऐसा एक केस नहीं है, आज तो दो साल की बच्चियां भी सयानी हो जाती हैं। क्या यहीं हमें पढ़ाया जाता है? कोई भी धर्म स्त्री का अपमान करने को नहीं कहता बल्कि सब नारी को पूजनीय मानते हैं। फिर हम किस रास्ते पर ले जा रहे हैं समाज को। इतना ही नहीं जैसा दादी ने कहा मेरी षादी को दहेज जुटाना पड़ेगा तो जो आज पापा मुझे पढ़ा लिखा कर कुछ बनाना चाहते है, उसका क्या अस्तित्व रह जाएगा। इतना आगे आ चुके हैं हम तब भी लड़कियों के दाम लगाए जाते हैं। लाखों रूप्ये केवल दहेज के लिए बर्बाद होते है। समझ नहीं आता जिस देष में दो वक्त की रोटी जुटाने में हमारे पेरेन्ट्स अपने सारे सुख को छोड़ देते हैं उसी देष में दहेज जैसी कुरीति आज तक बनी हुई हैं। अगर ष्षादी लड़की की होती है तो लड़के की भी तो होती है। वो जो अपना घर, पेरेन्ट्स सबको छोड़ कर पति के घर जाती है। परिवार के लिए पूरा दिन काम करती है। जब लड़की इतना कुछ करती है तो बीच में पैसे की दीवार क्यो बना रखी है हमने। अगर दहेज देना है तो दोनों को देना चाहिए क्योकि बात बराबरी की है। हमारे देष में सारे नियम कानून लड़कियों के लिए ही क्यों है। कोई लड़कों को क्यों नहीं सिखाता, लड़की की इज्जत करना। उनके साथ अच्छे से बिहेव करना।

Khushiyaa mil hi jati hain
आए दिन रेप होते है, लड़कियां एसिड अटैक का षिकार बनती हैं, तो कही दहेज के लिए प्रताड़ित की जाती हैं। नेता बयानबाजी करते है, कोई कानून नहीं बनता, कोई एफआईआर नहीं होती। केस सालों चलते है और बर्बाद होते है, कितने ही जीवन। हमें ही सोचना पड़ेगा, लड़ना होगा और पूरा सिस्टम सुधारना होगा। एक लड़की जिस्से पूरा घर चहकता है उसकी हंसी सबको खुष करती है। हम आजाद रहना चाहते है, रात में सड़कों पर घूमना चाहते हैं, मनपसंद कपड़े पहनना चाहते हैं, हम उड़ना चाहते हैं। ऐसा कब हो पाऐगा। कब हमारे सपने खुले आकाष में सांस ले पाऐंगें और कब हम भी अपने पेरन्ट्स का सपोर्ट बन पाऐेंगे। मुझे दहेज का सामान नहीं, बेइज्जत करने की चीज नहीं बल्कि एक लड़की के जैसे ही जीना है, बस बेखौफ और आजाद....
-Juhi Srivastava....

Friday 21 February 2014

अपने में ही बेमिसाल है ये अखबार



बड़े दिन बाद आज आपसे बहुत कुछ शेयर करने को हमे लिखने का ख्याल आया और लिखते-लिखते वो सबसे इम्पॉर्टेन्ट मीडियम भी याद आया जिसके जरिये हम बहुत कुछ सीखते और जानते है। आप पढ़ते हैं, तभी हम लिखते है। उफ! अब आप भी सोच रहे होंगे ये पढ़ाई जैसा बोरिंग चैप्टर मैने क्यूं ओपेन कर दिया। चलिए अब ज्यादा कन्फ्यूज नहीं करती। दोस्तों लिखने पढ़ने की बात हो तो मोटी-मोटी किताबों का ही ध्यान आता है लेकिन इन सब से बेहतर एक और चीज है। जानते हैं क्या, वो है आपका न्यूज पेपर
  पेपर! रोज सुबह हॉकर अंकल से यही स्नकर हम आधी नींद में ही पेपर लेने जाते है। आंखो में नींद होती है फिर भी धुध्ंाला जो भी दिखता है, पढ़कर सुकून मिल जाता है। कुछ लोगों की तो सुबह ही अखबार से होती है। मुंह में टूथब्रष दबा कर पूरा पेपर चुटकी में निपटा देते है। चूंकि मेरा बड़ा परिवार है तो यहां हर रोज पेपर के लिए एक नई जंग होती है, कौन पहले पढ़ेगा, कौन जल्दी-जल्दी सारे अखबार पढे़गा। इतना ही नहीं अगर एक साथ दो लोगों के हाथ लगा तो पेपर के कई पेज कहां गये समझ नहीं आता और फिर उसका सीक्वेंस लगाने में दूसरे को माथापच्ची करनी पड़ती है। अखबार देखा नहीं कि बरबस मुंह से निकला, उफ! फिर वही क्राइम, तोड़फोड़, और पॉलिटिक्स। तो वहीं कोई खुष होता है अपने मतलब का कुछ पढ़कर षाम होने तक ये सिलसिला चलता रहता है। मुझे पता है ये हर एक घर की कहानी है, क्योंकि किसी को पेपर मूवी टाइम देखने को चाहिए तो किसी को अपने फेवरेट स्टार को देखने के लिए और तो और एल्डरली धर्म, साहित्य और पॉलिटिक्स प्रेम से बचे नहीं रह पाते। इतना ही नहीं यही हाल आफिस का भी होता है, एक कुलीग पेपर का बंडल ले कर गया तो फिर एक-दो घ्ंाटे की फुरसत। दोस्तों अखबार पढ़ने की बहुत छोटी सी ही प्रोसेस और इससे जुड़ी कई अनगिनत बातें। क्या सच में ये सिर्फ कागज का बंडल है।
  रोज सुबह सबसे पहले पेपर पाने की ललक और उसे पढ़ने का सुकून बड़ी ही अच्छी वाली फीलिंग देता है ! हम चाहें भी तो अखबार के बिना अपनी लाइफ इमेजिन नहीं कर सकते। अब तो हम वर्चुअल वर्ल्ड मंे रहते हैं, लोग कहते हैं कुछ दिन बाद न्यूज पेपर ऑनलाइन ही पढ़ लिए जाऐगें कुछ दिन बाद क्यों अभी से ही कई अखबार नेट पर ही पढ़ लिए जाते हैं और फेसबुक पर शेयर भी हो जाते हैं। कई टॉपिक पर व्यूज़ भी अब नेट से ही लिये जाते हैं। फ्र्रेंड्स क्या लगता हैं आपको क्या बिना अखबार हम रह पाएंगे। हमारी आंख खुलती ही है कि हम अखबार की तरफ भागते हैं, और जब कई नेषनल हॉलीडे पर दूसरे दिन पेपर नहीं आता तो लगता है, आज कुछ अधूरा सा रह गया। दिन भर एक बेचैनी होती है। हां-हां मुझे पता है आप भी ऐसे ही मिस करते होंगे अपने फेवरेट न्यूज पेपर को।
  बड़ी ही अजीब दुनिया है अखबार की और उससे भी कहीं ज्यादा कड़ी मेहनत है इनके लिए काम कर रहे बहुत से लोगों की, जो हर दिन कुछ नया ले कर आते है हमारे लिए। कागज के चंद पन्नों को समेट कर, रंग बिरंगी तस्वीरों से एक बेहतरीन लुक देना, नऐ कलेवर और फॉलोअप स्टोरीज से भरा अखबार जाने कितने ही दिलों में बसता है। चाय की चुस्कियों के साथ अखबार के पीछे से मिसिज़ को निहारना हो चाहे पेपर के बीच रखा कोई लव मैसेज और तो और कई बार कोई तारीख याद दिलाना हो तब भी अखबार ही काम आता है। कभी ये भावनाओं को जोड़ता है तो कभी जीवन को एक नया मोड़ दे जाता है।

  दोस्तों पिछले कई सालों में बहुत कुछ बदल गया है। कल तक अखबार की जान कहे जाने वाले पत्रकार कंधे पर झोला, आंखों पर चष्मा और पैरों में हवाई चप्पल पहने सड़कों पर दिख जाते थे आज वही हाइटेक रिर्पोटर्स बन हाथ में आईपैड और लैपटॉप लिये दिखते है। ऐसे में जायज़ है कि अखबार भी अब एडवांस होने लगे हैं। मेरे एक गुरू जो कि मीडिया का जाना माना हिस्सा है, ने कई उन अनगिनत लोगों के बारे में बताया जो किसी फेम या पॉपुलेरिटी के भूखे नहीं थे, वो बस एक कप चाय पीकर रात भर काम करके पूरा अखबार निकालते थे। उन चेहरों को सिर्फ काम के लिए जुनून था और इतना ही नहीं टाइपराइटर पर खटाखट चलती वो अंगुलियां भी देखने वाले को अपना बना लेती थी। चेहरे पर कोई षिकन नहीं सिर्फ काम के लिए तत्पर ऐसे चेहरे भी अपने काम से ही पाठकों से गहरा रिष्ता बना लेते थे। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि आज काम के लिए जुनून नहीं हैं बल्कि आज का मीडिया खुल कर अपनी बात कहता है, जनता की आवाज बन रहा है, सरकार को आइना दिखा रहा है। अखबार आज केवल पाठक ही नहीं जुटा रहा बल्कि जनता को अपनी बात कहने का मंच भी दे रहा है।
  हमें पेपर जितने अच्छे रूप में मिलता है, उसे बनाने में जाने कितने लोगों की मेहनत होती है। अखबार के लिए लिखने और खबरें जुटाने रिपोर्टस सुबह पांच बजे ही उठ जाते है , कड़ी धूप में घ्ंटो काम करते तो कभी देर रात तक एक अदद खबर के लिए अपनी नींद तक भूल जाते हैं। वहीं समाचारों को जीवंत करती तस्वीरे लाने को भी ये लोग पंद्रह किलो का बस्ता लिए पूरा शहर छान लाते है। इतना ही नहीं जिस स्पीड में हम पूरा अखबार निपटा देते हैं उसे कलेक्ट करने में भी उनकी कई दिनों की मेहनत होती है। ये मीडिया पर्सन सिर्फ न्यूज के लिए आपने परिवार के संग समय नहीं बिता पाते तो कभी बडे-बड़े फेस्टिवल पर दूसरों के परिवार देख कर ही खुष हो जाते है। इतना ही नहीं सब करने के बाद भी उन्हें डर इस बात का होता है कि क्या यह सब उनक रीडर्स को पसंद आएगा? एक पत्रकार जब लिखता है तो यह सोच कर लिखता है कि उसका लिखा लोगों की सोच बदल सके। इसके बाद भी काम खत्म नहीं होता अखबार छपने तक भी कई अनगिनत हाथों की मेहनत होती है जिनके नाम को भी अखबार में जगह नहीं मिलती।
दोस्तों और आप तक सोलह पन्नों का कागज का ढेर पंहुचाने वाले हमारे मेहनती हॉकर भी कम तारीफ के काबिल नहीं होते घने कोहरे में भी वो सुबह चार बजे से ही काम पर लग जाते है। जिनके एक दिन आने पर हम खूब बडबड़ाते है। कितने अजीब हैं हम लोग जिस अखबार को पढ़ने के लिए हम इतने क्रेजी होते है, पढ़ने के बाद उसे ऐसे नजरों से हटाते है जैसे धूल के कड़ों को हवा। कहीं बड़ी ही खबसूरत बात लिखी थी कि, वॉषरूम और अखबार वैसे ही रखना चाहिए जैसे आपको अपने लिए देखना पसंद हो। सच भी तो यही है रद्दी के भाव बिकने वाले ये सोलह पन्ने कितने ही अनगिनत लोगों की मेहनत और डेडीकेषन का र्रिजल्ट होता है। वो अखबार जिसे कोई बड़ा नेता, और आईएस भी पढ़ता है तो कहीं टूटी-फूटी हिन्दी पढ़ने वाला कोई मजदूर। वहीं ठेले पर सब्जी बेच रही एक छोटी बच्ची भी इसी अखबार से ही पढना सीख रही होती है। एक अदद से कागज के पन्नों की अहमियत हमारे लिए तब तक ही होती है जब तक हम उसे पढ़ नहीं लेते और जनाब पढ़ने के बाद तो बस फिर तोड़ा, मोड़ा, फाड़ा और फेंका, कभी समोसा खाने के तो कभी कूड़ा फेंकने के काम आता है। हम जितनी ललक से पेपर पढ़ना चाहते है, उससे भी ज्यादा बुरी तरह से उसको रखते हैं।
एक अखबार जो निष्पक्ष है, किसी भी भेदभाव से दूर है, जो हमें हमारा हक दिलवाता है, कभी तो हमें आगे बढ़ना सिखाता है। वो जनता की आवाज बना है तो हमारा भी फर्ज है कि हम उसे सहेज कर रखे। भले ही बाद में बेच दे पर जब तक आपके पास है उसे रिस्पेक्ट दें क्योंकि यह सिर्फ कागज नहीं उससे जुड़ी कई जिंदगियों की मेहनत भी है। दोस्तों जब आप तक रोज आने वाले अखबार के लिए इतना कुछ हो रहा है तो हमारी तरफ से भी इसे एक सैल्यूट तो बनता ही है।