Wednesday 7 September 2011

Meri awaaj hi pehchhan hai............






जहां आवाज ही पहचान है...
वक्त के साथ खुद को अपडेट कर रहा रेडियो
उम्र के पड़ावों की याद दिलाता -रेडियो
शब्दों की कल्पनाएं साकार करता रेडियो


च्ये आकाशवाणी का लखनऊ केन्द्र है च्ये शब्द सुनते ही न जाने कितने चेहरे खिल जाते थे। दो तीन दशक पहले तक रेडियो सुनने के लिए लोगों में एक सनक देखी जाती थी। सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक का साथी रेडियो होता था। एक कहावत भी कही जाती है कि च्टीवी की दखल सिर्फ ड्रॉइंग रूम तक है । रेडियो प्रेम इस कदर लोगों के सिर चढ़ कर बोलता था कि इसके बिना एक पल भी नहीं काटा जा सकता था। रेडियो से निकला संगीत लोगों के दिलों को छूता था। तब हर दिन रेडियो पर एनाउन्सिंग मानो किसी नई दुल्हन घंघट जैसी महसूस होती थी। लोगों में एक जिज्ञासा थी जानने की कि रेडियो के पीछे बोलने वाला एनाउन्सर कैसा होगा। उसकी आवाज एक उत्सुकता पैदा करती थी। एनाउन्सर के बोलने का अंदाज कैसे इतना मनमोहक होता है, रेडियो एनाउन्सर इतना मीठा कैसे बोल लेता है और भी बहुत कुछ । रेडियो लोगों का इतना प्यारा दोस्त था कि अगर एक दिन भी रेडियो काम न करे या बंद हो जाये तो मानों घर सूना-सूना हो जाता था। तब लोग रेडियो को एक यन्त्र नहीं बल्कि इंसान समझते थे। उसकी कही एक-एक बात सच लगती थी।
समय बदला, धीरे-धीरे रेडियो की अहमियत हमारी जिंदगी में कम होने लगी। रेडियो सिर्फ सुना सकता था लेकिन टेक्नोलाजी में तरक्की से टीवी जब हमारी जिंदगियों में शामिल हुआ तो रेडियो की फैन फॉलोइंग कम होने लगी टीवी के आ जाने से रेडियो की लोकप्रियता कम होती रही। टीवी सिर्फ सुना ही नहीं बल्कि बल्कि तस्वीरें भी दिखा सकता था। इसलिए लोगों ने टीवी को चुना। तब एक क्रांति सी आई थी, जिनमें लोगों में टीवी की लोकप्रियता को बढ़ावा दिया। इतना ही नहीं, टीवी हर घर का हिस्सा बनता गया और रेडियो को लोगों ने यूहीं भुला दिया गया।

अब एक बार फिर से रेडियो का दौर लौट रहा है। लोग रेडियो के दिवाने हो रहें हैं। इसका कारण है एफ.एम. का आगमन। जब से एफ.एम. आया, लोगों ने रेडियो सुनना दुबारा शुरू कर दिया। आज हर कोई एक बार फिर रेडियो का क्रेजी हो चुका है और इतना ही नहीं ,चाहे घर हो या ऑफिस, रेडियो लोगों की पहली पसंद बनता जा रहा है। सिर्फ सुनकर जानकारी प्राप्त करना ज्यादा सरल है बजाय आंखों को तकलीफ दिये।

कई हस्तियों को पहचान दिलाई रेडियो ने:- आकाशवाणी का इतिहास भी कम रोचक नहीं रहा। पूरी दुनिया में अपने योगदान से देश की कई महान हस्तियों संगीतकारों और गायकों ने अपने करियर की शुरूआत आकाशवाणी से ही की थी। जाने माने शहनाई वादक उस्ताद विस्मिल्ला खां आकाशवाणी से ही मशहूर हुऐ। वहीं जाने-माने भजन गायक अनूप जलोटा ने अपनी गायकी से सभी को भक्ति में सराबोर किया। उन्होनें अपने करियर की शुरूआत आकाशवाणी लखनऊ से ही की थी। ज्ञान प्रकाश घोष और विष्णु गोविंद जोग का नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं, लोग रेडियो पर उनका संगीत सुनने को तरसते रहते थे।
मात्र १६ वर्ष की उम्र में तलत महमूद ने भी अपने करियर की शुरूआत आकशवाणी लखनऊ से ही की थी। उन्होंने गालिब, मीर और निगार की गजलें गा कर जहां बड़ी वाह-वाही लूटी , वहीं संगीत के क्षेत्र में अपना अमिट स्थान बनाया। आज भी तलत महमूद का नाम संगीत के क्षेत्र में अग्रणी रूप से लिया जाता है। च्सब दिन एक समान नहीं था, बन जाऊंगा क्या से क्या मैं, इसका कुछ ध्यान नहीं था- ये तलत महमूद का पहला रिकार्डेड गीत था। तब उनके संगीत को सुनने को लोग बेताब रहते थे।
उस्ताद आमिर खां का संगीत उस वक्त दिवानों की तरह सुना जाता था। आमिर खां साहब ने भी आकाशवाणी को अपना अभिन्न योदगान दिया। बेगम अख्तर की गजलों को सुन कर आज लोग मुग्ध हो जाते हैं। उसी बेगम अख्तर ने आकाशवाणी लखनऊ को अपना सब कुछ समर्पित किया। उनकी आवाज सुनने को तरसते थे। उनकी इतनी फैन फॉलोइंग थी जो अब शायद ही रेडियो को मिल पाये। वहीं च्बहिरे बाबाच्नामक रेडियो प्रोग्राम से वाह-वाही लूटने वाले रमई काका भी आकाशवाणी लखनऊ के स्टाफर रहे। उनके प्रोग्रामों का लोग बेसब्री से इंतजार करते थे । पंडित भीमसेन जोशी, एम.एस. सुब्बलक्ष्मी, पन्ना लाल घोष, बड़े गलाम अली खां इत्यादि नाम किसी पहचान के मोहताज नहीं है। इन सभी ने ऑल इण्डिया रेडियो की लंबे समय तक सेवा की। कितने ही गायक संगीतकार यहीं से प्रसिद्ध हुए। करियर की शुरूआती समय में आकाशवाणी ने ही बहुत से हुनरों को एक मंच प्रदान किया। आज भी भविष्यवाणी पर इन धुरन्धरों के संगीत को सुनने वालों में एक झलक देखी जा सकती है। इतना ही नहीं, इन गायकों और संगीतज्ञों की सीडी और टेप यहां संभाल कर रखे गए हैं। शास्त्रीय संगीत का बेहतरीन कलेक्शन सिर्फ आकाशवाणी में ही जीवंत दिखता है।

बच्चों से लेकर यूथ तक दिवाना है रेडियो का- आज टीवी भले ही मनोरंजन हर सुविधाएं उपलब्ध करा रहा हो, लेकिन वयस्कों, अधेड़ और बुजुर्ग व्यक्तियों में आकाशवाणी और विविध भारती सुनने का उतना ही क्रेज बरकरार है। सुबह भजन से शुरू हुआ रेडियो का सफर, रात मेें शास्त्रीय संगीत की धमक पर ही खत्म होता है। विविध भारती पर बजने वाले गीत बुजुर्गों को भी गुनगुनाने पर मजबूर कर देते हैं। विविध भारती के एक फैन ने बताया कि वे रेडियो के दीवाने हैं क्योंकि यहां हर तरह के गाने सुनने को मिलते हैं और पुराने गानों का बेहतरीन कलेक्शन और कहीं नहीं मिल सकता जो यहां मिलता है। टीवी से बेहतर है पुरानी यादों को ताजा करना, जिसके लिए रेडियो से अच्छा जरिया भले ही कोई हो। कहना है ७० वर्षीय विनोद जी का। आज भी रेडियो सीनियर सिटीजन की पहली पसंद है । बाल जगत, बच्चों का मनपसंद कार्यक्रम है तो युववाणी पर नये-नये प्रयोग युवाओं को भा रहे हैं। शहर हो या गांव हर युवा शाम को सवा पांच अपना कार्यक्रम सुनना नहीं भूलता। वहीं समाचारों में भी लोगों की रुचि कम नहीं है।
सबको भाए रेडियो की डगर:- एक आम धारणा बनी हुई है कि रेडियो गांवों में ही सुना जाता है। एक हद तक ये सही भी है। आकाशवाणी के पूर्व कार्यक्रम अधिशाशी के.बी. त्रिवेदी भी कहते हैं कि आए दिन ग्रामीण जिलों से पत्र आते हैं। वे एक-एक प्रोग्राम को ध्यान लगा कर सुनते हैं और समझते हैं। इसके लिए हमें भी जागरूक रहना पड़ता है कि गलत असर हो। गांवों में
रेडियो की फैन फॉलोइंग देखते ही बनती है। इतना ही नहीं एफ.एम. को छोडि़ए। प्राईमरी चैनल, आकाशवाणी में शहरवासियों की रूचि कम नहीं । कहना है युववाणी की कार्यक्रम अधिशासी मधुलिका श्रीवास्तव का उन्होंने रेडियो की अहमियत को बताते एक किस्सा सुनाया । कार्यक्रम में ट्रैफिक पुलिस मैन से बात क र रेडियो पर श्रोताओं को उनका नम्बर देकर यातायात से जुड़ी हर दिक्कत
का समाधान करने की मांग की । प्रोग्राम बजने के आधेे घंटे बाद ही पुलिस का फोन लगातार बजने लगा। इसे कहते हैं जागरूकता। रेडियो का कार्य सिर्फ सूचना, शिक्षा, मनोरंजन नहीं बल्कि एक पब्लिक ब्राडकास्टर की भांति भी काम करना भी है।
टेप से सीडी तक, टाईपराइटर से कम्प्यूटर तक:- आकाशवाणी में रिकार्डिंग करने के लिए पहले टेप प्रयोग किये जाते थे, आज वहीं उनकी सीडी और डीवीडी भी मौजूद है, लेकिन आज भी यहां कई कार्यक्रमों में टेप बजाए जाते हैं। टेप को चलाने और उन पर रिकार्डिंग करने के लिए एक मशीन का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे सुविधापूर्वक रिकार्डिंग की जाती है, लेकिन आज कम्प्यूटर के आ जाने से रिकार्डिंग में तो आसानी हो ही गई है, वहीं समय की भी बचत होती है। रिकार्डिंग के बाद उनकी ऐडिटिंग और मिक्सिंग से भी प्रोग्राम की गुणवत्ता बढ़ाई जाती है, तब प्रोग्राम सुनने में कई गुना बेहतर लगते हैं। इतना ही नहीं आकाशवाणी न्यूज में जहां टाइपराटर पर काम किया जाता था ,अब उसकी जगह कम्प्यूटर ने ले ली है। जिसमें काम जल्दी और बेहतर होने लगा। आकाशवाणी के डायरेक्टर गुलाब चंद बताते हैं कि आने वाले समय में वो दिन दूर नहीं जब आकाशवाणी और बेहतर बन सकेगा और इसकी पहुंच हर क्षेत्र के हो सके गी।
कायम है ऑल इंडिया रेडियो का वर्चस्व - रेडियो सुनने की बात हो तो अब कई प्राइवेट रेडियो चैनल आ चुके हैं। ऐसे में आकाशवाणी के पास एक बड़ी चुनौती थी कि कैसे नम्बर वन पर बने रहे। इसी दौड़ में एफ.एम. रेडियेा की शुरूआत की गई ताकि आकाशवाणी लोगों की पहली पसंद बना रहे। एक हद तक यह सच भी हुआ और आज हर मोबाइल पर एफ.एम. उपलब्ध है जिससे कहीं भी कभी भी रेडियो सुना जा सकता है । एफ.एम. पर प्रसारित होने वाली न्यूज भी लिसनर्स की पहली पसंद है। आकाशवाणी के ही पृथ्वीराज चौहान कहते हैं कि आज भी रेडियो लोगों की पहली पसंद है। कभी शास्त्रीय संगीत तो कभी पुराने गीत कभी एफ.एम. से कई श्रोताओं को जोड़ कर रखा है। आगे वे कहते हैं कि पहले रेडियो के अलावा दूसरा मनोरंजन का कोई विकल्प नहीं
था। टीवी के आ जाने से लोगों को टीवी ही पसंद आने लगा, लेकिन अब इंसान टीवी से भी बोर हो चुका है, क्योंकि लोगों को टीवी का निगेटिव साइड पता चल गया है। ऐसे में अब फिर से वो समय लौट आया है जब लोग रेडियो की तरफ देख रहे हंै। २४ घंटे टीवी से इंसान बोर हो कर अब रेडियो की तरफ दौड़ रहा है। आकाशवाणी की लिसनिंग अब भी सबसे ज्यादा है ओर इसे कोई भी चैनल टक्कर नहीं दे पाया है। आज सब तरफ बाजारवाद हावी है, ऐसे में सभी आगे बढऩे की होड़ में लगे हुए हैं। आकाशवाणी की पहुंच दुनिया के हर कोने हर गांव हर शहर तक है। अब चाहें जहां भी रहें रेडियो हमारे साथ रह सकता है। मोबाइल हो या कार या फिर कोई ऑफिस एफ.एम. हर जगह मौजूद है। हर वक्त का साथी रेडियो ही है। एफ.एम. ने रेडियो को पहले से भी ज्यादा लोकप्रिय बना दिया है। आकाशवाणी की सबसे महत्वपूर्ण बात में है कि यह बाजारवाद की दौड़ में नहीं है। जनहित के लिए काम करने वाला रेडियो जनता के दिलों तक जुड़ा है।
एफ.एम. ने बदल दी रेडियो की तस्वीर:- प्राईमरी चैनल पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में कभी सिग्नल तो कभी अन्य किसी गड़बड़ी से सुनने में दिक्कतें आ जाती थी और ये कार्यक्रम पूरे दिन नहीं बल्कि अपने स्पेशल टाइम पर प्रसारित होते है, लेकिन अब एफ.एम. के आ जाने से रेडियो की तस्वीर ही बदल गई। अब रेडियो से वो लोग भी जुड़ चुके हैं, जो कभी रेडियो तक नहीं सुनते थे। इतना ही नहीं नये-पुराने गीतों के साथ समाचार और मनोरंजन से हर कोई रेडियो से
जुड़ चुका है।

कोई इंसान हो या वस्तु हर किसी में कुछ अच्छाइयां होती हैं तो कुछ बुराईयां। रेडियों में भी कई अच्छाईयां है वहीं कुछ ऐसी कमियां भी हैं जो लिसनर्स को निराश कर जाती है। आकाशवाणी के प्राइमरी पर प्रसारित होने वाले की प्रोग्राम लाइट जाने के कारण प्रसारित नहीं हो पाते। इस कमी को दूर करने के लिए आकाशवाणी नियमित प्रयासरत है। इसका कारण यहां लगा ट्रांसमीटर जो मात्र ५०० किलोवाट का है। जबकि इसे और बढ़ाना चाहिए। लाइट जाने पर जनरेटर नहीं चल पाता जिससे कई लोग अपना मनपसंद कार्यक्रम नहीं सुन पाते। इतना ही नहीं जहां आज पूरी दुनिया इन्टरनेट पर कनेक्ट है वहीं ऑल इडिया रेडियो ेअब भी काफी पीछे है। यहां प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की सूची न तो इन्टरनेट पर उपलब्ध है ,न ही ऐसी कोई योजना अब तक बनाई गई है। पहले दैनिक समाचार पत्रों में आकाशवाणी के कार्यक्रमों की जानकारी दी जाती थी, परन्तु अब ऐसा नहीं होता। इससे कई श्रोता अपने मनपसंद गाने व प्रोग्राम हर समय नहीं सुन पाते। गुलाब जी इस बात के जवाब पर कहते हैं कि वे निरन्तर प्रयासरत है कि आकाशवाणी को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जा सके। अगले दो-तीन साल में रेडियो के प्राइमरी प्रोग्राम भी आपको हर समय सुनाई देंगे, जिससे काफी लोग आकाशवाणी से जुड़ सकेंगे। इतना ही नहीं विविध भारती भी अब बिना किसी दिक्कत के एफ.एम पर सुना जा सकेगा।

आकाशवाणी आरकाइव, जहां है सुरों का भंडार
आरकाइव गैलरी में अनेक पुराने गीत, संगीत और उनकी धुनों का बेहतरीन कलेक्शन मौजूद है। इतना ही नहीं, पंडित भीमसेन जोशी हों या उस्ताद विस्मिल्ला खां, सभी की धुनें और संगीत यहां मौजूद हैं। आकाशवाणी अपने श्रोताओं को उनका मनपसंद शास्त्रीय संगीत तो सुनाता ही है, साथ ही उनक ी सीडी और टेप भी अपने श्रोताओं के लिए रियायती दामों पर उपलब्ध भी कराता है। यहां उपलब्ध सीडी में पंडित ओंकार नाथ ठाकुर, पंडित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर, पन्ना लाल घोष का बांसुरी वादन, वी.जी. जोग, बेगम अख्तर, उस्ताद बड़े गुलाम अली खां, उस्ताद बिस्मिल्ला खां, आजादी के गीत ,उस्ताद आमिर खां, और सिद्धेश्वरी देवी सहित कई शास्त्रीय संगीतकारों की सीडी १५ परसेन्ट के डिस्काउन्ट पर रुपये १९५ में उपलब्ध है, जिसे कोई भी आरकाइव से खरीद सकता है।

हर क्षण बेहतर की ओर बढ़ते कदम
पिछले एक दशक में आकाशवाणी ने काफी तरक्की की है। पहले जहां कई प्रोग्राम साधरण रूप में जाते थे, वहां अब कम्प्यूटर एडिटिंग से प्रोग्राम को बेहतर और नया बनाया जा रहा है। प्रसारित होने वाले कार्यक्रम नये-नये विषयों पर और नई-नई तकनीक से बना कर सुनवाए जाते हैं। अब तो आकाशवाणी की न्यूज़ भी ऑनलाइन सुनी जा सकती है या फिर न्यूज ऑन फोन से १२५८ पर समाचार सुना जा सकते हैं।

मिलिए यहां के कार्यक्रम अधिशासियों से-

सुनील शुक्ला (संपादक):- पहले रेडियो के पास एकाधिकार था, परन्तु अब प्रतियोगिता है। ऐसे में हमें और आगे बढऩा पड़ेगा और नई-नई तरकीबों से लिसनर को जोडऩा पड़ेगा। आकाशवाणी न्यूज में कई बदलाव किये गए हैं। एफ.एम. न्यूज सबसे महत्वपूर्ण है। भले ही और कोई भी रेडियो चैनल आ जाए लेकिन आकाशवाणी की अपनी जगह है। समाचार से काफी लोग जुड़े हैं क्योंकि आपात या विपदा की स्थितियों में रेडियो के अलावा दूसरा विकल्प नहीं होता।

हरी लाल (न्यूज एडिटर- रेडियो के सामने अभी भी काफी चुनौतियां हैं। हमने न्यूज का दायरा बढ़ाने के पीटीसी, रिपोर्टर, फैक्स, फोन व इन्टरनेट आदि की सुविधाएं ले रखी है जो न्यूज को हाइटेक बना रही है।

रश्मि चौधरी (शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम अधिशासी ( बड़े कलाकारों को सुनने के लिए और उन्हें प्रसारित करने के लिए भारी मात्रा में खत आते हैं। शास्त्रीय संगीत में नये युवाओं को जोडऩे के लिए हर साल संगीत ऑडीशन होते हैं। यह प्रतियोगिता २६ साल से होती आई है। क्लासिकल में काफी स्कोप है। हम

चाहते हैं कि नए कलाकार आए और रेडियो से जुड़ें।

मुधलिका श्रीवास्तव (युववाणी कार्यक्रम अधिशासी ( यूथ बेस्ड प्रोग्राम युवाओं को भाते हैं, लेकिन ४५ मिनट के कार्यक्रम में स्पॉट और कामर्शियल के बजने से कार्यक्रम की उपयोगिता खत्म हो जाती है। रेडियो ज्ञान का भंडार है। ऐसे में क्वालिटी और टेक्निकली काफी सुधार किया गया है । जो युवा, युवावाणी से जुडऩा चाहते हैं, रेडियो के लिए नया कुछ करना चाहते हैं या लिखते हैं, यहां आकर अपना योगदान दे सकते हैं।

इतिहास

युद्घ में रेडियो
वियतनाम पर अमेरिकी हमले के दौरान अमेरिकन सैनिकों की हालत बहुत खराब थी। रोज सैनिकों के मरने की खबरें आती थी। हर तरफ बम गोली धमाके महीनों से चल रहे थे। सैनिकों को चिंता थी कि वह वापस घर पहुंच पायेंगे की नहीं। ऐसे में ए.एफ.वी.एन. (अमेरिकन फोर्सेज वियतनाम नेटवर्क) की सायगान में स्थापना उन सैनिकों के लिए संजीवनी की तरह काम कर रही थी। विली विलियम्स ने माइक की कमान संभाली थी। यह रेडियो नेटवर्क १५ अगस्त १९६२ को शुरू हुआ और बहुत लोकप्रिय हुआ। इस उद्घोषक की आवाज उन सैनिकों के दिल दिमाग में नया संचार पैदा कर देती थी, जो डरे और निराश हो चुके थे।

रेडियो का इतिहास-
२४ दिसंबर १९०६ की शाम कनाडाई वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन ने जब अपना वॉयलिन बजाया और अटलांटिक महासागर में तैर रहे तमाम जहाजों के रेडियो ऑपरेटरों ने उस संगीत को अपने रेडियो सेट पर सुना, वह दुनिया में रेडियो प्रसारण की शुरुआत थी। इससे पहले जे.सी. बोस ने भारत में तथा मार्कोनी ने सन १९०० में इंग्लैंड से अमरीका बेतार संदेश भेज कर व्यक्तिगत रेडियो संदेश भेजने की शुरूआत कर दी थी, पर एक से अधिक व्यक्तियों को एक साथ संदेश भेजने या ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत १९०६ में फेसेंडेन के साथ हुई। ली-द-फोरेस्ट और चार्ल्स हेरॉल्ड जैसे लोगों ने इसके बाद रेडियो प्रसारण के प्रयोग करने शुरु किए। तब तक रेडियो का प्रयोग सिर्फ नौसेना तक ही सीमित था। १९१७ में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद किसी भी गैर फौजी के लिए रेडियो का प्रयोग निषिद्ध कर दिया गया।

पहला रेडियो स्टेशन
१९१८ में ली-द-फोरेस्ट ने न्यूयॉर्क के आईब्रिज इलाके में दुनिया का पहला रेडियो स्टेशन शुरु किया था, पर कुछ दिनों बाद ही पुलिस को खबर लग गई और रेडियो स्टेशन बंद करा दिया गया। नवंबर १९४१ में सुभाष चंद्र बोस ने रेडियो जर्मनी से भारतवासियों को संबोधित किया। एक साल बाद ली फोरेस्ट ने १९१९ में सैन फ्रैंसिस्को में एक और रेडियो स्टेशन शुरु किया। नवंबर १९२० में नौसेना के रेडियो विभाग में काम कर चुके फ्रैंक कॉनार्ड को दुनिया में पहली बार कानूनी तौर पर रेडियो स्टेशन शुरु करने की अनुमति मिली।
कुछ ही सालों में देखते ही देखते दुनिया भर में सैकड़ों रेडियो स्टेशनों ने काम करना शुरु दिया। रेडियो में विज्ञापन की शुरुआत १९२३ में हुई। इसके बाद ब्रिटेन में बीबीसी और अमरीका में सीबीएस और एनबीसी जैसे सरकारी रेडियो स्टेशनों की शुरुआत हुई।

भारत में रेडियो
१९२७ तक भारत में भी ढेरों क्लबों की स्थापना हो चुकी थी। १९३६ में भारत में सरकारी इम्पेरियल रेडियो आफ इंडिया की शुरुआत हुई जो आजादी के बाद ऑल इंडिया रेडियो या आकाशवाणी बन गया।१९३९ में द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत होने पर भारत में भी रेडिया के सारे लाइसेंस रद्द कर दिए गए और ट्रांसमीटरों को सरकार के पास जमा करने के आदेश दे दिए गए। नरीमन प्रिंटर उन दिनों बॉम्बे टेक्निकल इंस्टीट्यूट बायकुला के प्रिंसपल थे। उन्होंने रेडियो इंजीनियरिंग की शिक्षा पाई थी। लाइसेंस रद्द होने की खबर सुनते ही उन्होंने अपने रेडिया ट्रांसमीटर को खोल दिया और उसके पुर्जे अलग-अलग जगह पर छपा दिए। इस बीच गांधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया। गांधी जी समेत तमाम नेता ९ अगस्त १९४२ को गिरफ्तार कर लिए गए और प्रेस पर पाबंदी लगा दही गई। कांग्रेस के कुछ नेताओं के अनुरोध पर नरीमन प्रिंटर ने अपने ट्रांसमीटर के पुर्जे फिर से एकजुट किया। माइक जेसे कुछ सामान की कमी थी जो शिकागो रेडियो के मालिक नानक मोटवानी की दुकान से मिल गई और मुंबई के चौपाटी इलाके के सी व्यू बिन्डिंग से २७ अगस्त १९४२ को नेशनल कांग्रेस का प्रसारण शुरू हो गया।
पहला प्रसारण:
अपने पहले प्रसारण में उद्धोषक उषा मेहता ने कहा ४१.७८ मीटर पर अंजान जगह से यह नेशलन कांग्रेस रेडियो है। रेडियो पर विज्ञापन की शुरुआत १९२३ में हुई।
इसके बाद इसी रेडियो स्टेशन ने गांधी जी का भारत छोड़ो का संदेश, मेंरठ में ३०० सैनिकों के मारे जाने की खबर, कुछ महिलाओं के साथ अंग्रेजों के दुराचार जैसी खबरों का प्रसारण किया जिसे समाचारपत्रों में सेंसर के कारण प्रकाशित नहीं किया गया था। पहला ट्रांसमीटर १० किलोवाट का था जिसे शीघ्र ही नरीमन प्रिंटर ने और सामान जोड़ कर सौ किलोवाट का कर दिया। अंग्रेज पुलिस की नजर से बचने के लिए ट्रांसमीटर को तीन महीने के भीतर ही सात अलग-अलग स्थानों पर ले जाया गया। १२ नवंबर १९४२ को नरीमन प्रिंटर और उषा मेहता को गिरफ्तार कर लिया गया और नेशनल कांग्रेस रेडियो की कहानी यहीं खत्म हो गई। नवंबर १९४१ में रेडिया जर्मनी से नेताजी सुभाष चंद्र बोस का भारतीयों के नाम संदेश भारत में रेडियो के इतिहास में एक ओर प्रसिद्ध दिन रहा जब नेताजी ने कहा था, च्तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा।ज् इसके बाद १९४२ में आजाद हिंद रेडियो की स्थापना हुई जो पहले जर्मनी से फिर सिंगापुर और रंगून से भारतीयों के लिये समाचार प्रसारित करता रहा।
आजादी के बाद रेडियो
आजादी के बाद अब तक भारत में रेडियो का इतिहास सरकारी ही रहा है। आजादी के बाद भारत में रेडियो सरकारी नियंत्रण में रहा। सरकारी संरक्षण में रेडियो का काफी प्रसार हुआ। १९४७ में आकाशवाणी के पास छह रेडियो स्टेशन थे और उसकी पहुंच ११प्रतिशत लोगों तक ही थी। आज आकाशवाणी के पास २२३ रेडियो स्टेशन हैं और उसकी पहुंच ९९.१ फीसदी भारतीयों तक है। टेलीविजन के आगमन के बाद शहरों में रेडियो के श्रोता कम होते गए, पर एफ.एम. रेडियो के आगमन के बाद अब शहरों में भी रेडियो के श्रोता बढऩे लगे हैं पर गैर सरकारी रेडियो में अब भी समचार या समसामयिक विषयों की चर्चा पर पाबंदी है। इस बीच आम जनता को रेडियो स्टेशन चलाने देने की अनुमति के लिए सरकार पर दबाव बढ़ता रहा है। १९९५ में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि रेडिया तरंगों पर सरकार का एकाधिकार नहीं है। सन २००२ में एनडीए सरकार ने शिक्षण संस्थाओं को कैंपस रेडियो स्टेशन खोलने की अनुमति दी। १६ नवम्बर २००००६ को यूपीए सरकार ने स्वयंसेवी संस्थाओं को रेडियो स्टेशन खोलने की इजाजत दी है। इन रेडियो स्टेशनों में भी समाचार या समसामयिक विषयों की चर्चा पर पाबंदी है पर इसे रेडियो जैसे जन माध्यम के लोकतत्रीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।