Friday 26 July 2013

रूक जाना नहीं तू कहीं हार के


सोलह साल की मेहर जिसने अभी जिंदगी के उस पड़ाव में कदम रखा था, जब उसे स्वंय और समाज में खुद के लिए होने वाले कुछ बदलावों को समझना था, जानना था और बहुत कुछ सीखना भी था। सबकी सोच और स्वीकृति के मुताबिक अपने आप को परिपक्व करना था। पढ.ाई में हमेषा से अव्वल रहने वाली मेहर को उम्मीद थी कि वो इस बड.ी सी यूनिवर्सिटी में भी टॉप पर बनी रहेगी। कॉलेज के पहले दिन मेहर को सब कुछ बदला सा लगा। यहां का माहौल स्कूल जैसा नहीं था, सब कोई अपने में ही मस्त था। घर आकर मेहर खूब रोई। पेरेन्ट्स ने पहले ही बोल दिया था कि नब्बे प्रतिषत अंक ही आने चाहिए। जैसे तैसे परीक्षाऐं हुई परिणाम भी उसके मनमुताबिक नहीं आए। डिप्रेषन में आकर उसने हार मान ली और एक दिन स्वंय उसने मौत को गले लगा लिया।

   त्ेारह साल की सोनल रंग-रूप में साधारण पर हमेषा से पढाई में आगे रहने वाली लड.की थी लेकिन उसकी बड.ी बहन जो काफी खूबसूरत थी हर कोई बड़ी की तारीफ करते नहीं थकता था। हर बार भेदभाव झेलती  सोनल के अव्वल आने पर भी सिर्फ पीठ थपथपा दी जाती थी। बहन से कम्पैरिजन का ये दर्द दिन रात कोसता रहता। अच्छी से अच्छी ड्ेस पर भी सिर्फ ‘ठीक है’ कमेंन्ट इस कदर उसे तंग करने लगा कि एक दिन तंग आकर आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया और पेरेन्ट्स को उम्रभर के लिए रोने को छोड. गयी।

     तीसरी कहानी है कैलाष की जिसने गरीब परिवार में जन्म लिया। मजदूरी करके अपना पेट पालने वाले और कठिन हालातों में कैलाष को पढानें वाले गरीब मां-बाप के लिए वो ही एकमात्र आसरा था। कैलाष भी उन्हें बेहद प्यार करता था। बड़ा आदमी बनना और मां-बाप को एक अच्छी जिंदगी देना ही उसका मकसद था। लेकिन सारे ख्वाब चूर-चूर हो गये जब प्यार में हार सहन न होने से कैलाष ने रेल के नीचे आ कर जान दे दी।
  ऊपर लिखी घटनाऐं कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि हमारे आपके बीच का सच है। आत्महत्या जैसा बड़ा कदम आजकल आम हो गया है। आखिर क्या कारण है कि एक खुषमिजाज इंसान खुद ही खुषियों से नाता तोड़ कर अपनी जिंदगी समाप्त कर रहा है। होने को तो कुछ भी हो सकता है लेकिन यूंही दुनिया छोड़ देना वो भी अपनी वजह से ये बात कुछ जान नहीं पड़ती।
  कहने को तो लोग कुछ भी कहते है लेकिन स्थिति केवल वो ही समझ सकता है जिस पर बीत रही होती है। हम इंकार नहीं करते कि लोगो के पास परेषानियां कम नहीं होती। लेकिन परेषानी और चिंता में हर वक्त डूबे रहना, या उन्हें स्वयं पर हावी होने देना ये कोई समझ की बात नहीं। अगर गौर से देखे तो पाऐंगे कि सुसाइड करने वाले लोगों में अधिकतर पढ.े लिखें लोग या सभ्य परिवार के ही लोग पाऐ जाते हैं। क्या कभी सोचा है कि सुबह से लेकर षाम तक काम करने वाला मजदूर आत्महत्या क्यों नहीं करता। कहने को वो हमसे स्टेटस में नीचे होते है लेकिन उनकी फिलॉसिफी हमसे कई गुना बेहतर होती है। कभी किसी सब्जी वाले से अपनी परेषानियों का बखान करते सुुना आपने या कोई रिक्षे वाला तेज धूप से डर कर एक कोने में बैठे मिला हो। ये सभी लोग हमारे लिए एक मिसाल के तौर पर है जो हर पल यही समझाते हैं कि कोषिष करने वालों की कभी हार नहीं होती। मेहनत से डर कर कोई नया स्टेप ही न लेना या बैठे-बैठे ये सोचना कि अब कुछ नहीं हो सकता ये कहां का न्याय है। अकसर लोग कहते है मेरी लाइफ में कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा, लेकिन जब गौर से सोचे तो पाऐंगे कि लाइफ नॉरमल चल रही है, खाने को दो वक्त खाना मिल रहा, तन पर कपड़े भी है। तो कैसे कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा।
जिंदगी स्वंय मंे बहुत खूबसूरत है और उससे भी ज्यादा संुदर है वो रिष्ते जो हमें स्पेषल फील कराते है। सोच के देखिये अगर एक दिन आपने सबसे महंगी और संुदर ड्ेस पहनी हो और किसी ने भी आपको नोटिस ही न किया हो न ही तारीफ की, तो कैसा लगेगा आपको। कोई भी ये नहीं चाहेगा कि कोई उसे अहमियत न दे। इसी लिए जरूरी है पहले खुद लोगों को अहमियत दे उन्हें स्पेषल फील कराऐं तभी वो आपकी भी कदर करेगें।
अकसर देखा जाता है लोग परेषानियों में डूबे रहते है सोचते है कोई भी उन्हे नहीं चाहता। ऐसे में उनके जहन में बार-बार यही बात आती है कि जिस दिन मैं चला जाउंगा उस दिन मेरी अहमियत समझेगें। ऐसी बातें मजाक में हो तो ठीक है क्योंकि जिंदगी में हर कोई आपकी अहमियत बताए जरूरी तो नहीं । मगर आपको दूसरों के लिए न सही अपने लिए स्पेषल फील करना होगा। सोच कर देखे कभी आपकी वजह से दूसरों के चेहरे पर मुस्कान आई हो। इससे अच्छा भला और क्या हो सकता है। आज का यूथ षॉर्ट टर्म सक्सेस में विष्वास करता है, जल्दी सफलता न मिले तो निराष हो जाता है, लेकिन उसे ये नहीं पता होता कि सक्सेस का कोई षॉर्ट कट नहीं होता पर हां विष्वास स्ंवय पर ही रखना होगा।

अकसर लोग सुंदर रूप रंग को ही सब कुछ मानते है लेकिन अपने मन की संुदरता को भूल जाते है सुकरात का नाम आज सब जानते है वो षक्ल से एकदम अच्छे नहीं थे लेकिन उनके विचारों को सबने लोहा माना। बाहरी संुदरता तो सिर्फ दिखावे की बातें है असल में इंसान की पहचान तभी होती है जब वो मन से सुंदर हो। गर्व करे उस रूप पर जो खुदा ने दिया है और इस जिंदगी को एक खुषनुमा ढंग से जिए तो सफलता जरूर मिलेगी। मेरी टीचर ने बहुत ही खूबसूरत बात कही जो मैं हमेषा ही फौलो करती हूं कि जिंदगी आपकी है, और ये आपकी च्वाइस है कि आप कैसे जिऐं। हममे से लगभग नब्बे प्रतिषत लोग दूसरों की मर्जी से जीते है, और जब वे उम्मीदों पर खरा नहीं उतरते वहीं से कॉनफ्लिक्ट पैदा होता है और लोग तनाव में चले जाते है। इससे बेहतर है जिंदगी अपने हिसाब से जियंे।
एक बहुत अच्छी किताब में लिखा था कि दुनिया मंे फेलियर नाम की कोई चीज नहीं होती। ये सिर्फ एक सीखने की प्रक्रिया है, और जब ये प्रक्रिया पूरी होगी वो सक्सेस में बदल जाऐगी। तो असफलता से निराष होने से बेहतर है जो पाना चाहते है उसके लिए जी जान से जुट जाइये यही एक बेहतर कल की षुरूआत है। एक क्लास मंे तीस बच्चे हों और तीसों र्फस्ट आए ये तो पासिबल नहीं हर कोई बराबर की षिक्षा लेता है फिर कोई प्रथम और कोई थर्ड क्यों आता है, क्योंकि इण्डिया हर बार वर्ल्ड कप जीते जरूरी तो नहीं। वैसे ही लक्ष्य वैसे ही हो जो हमारे लिए केपेबल हो पूरे करना। तभी हम तनाव से बच सकंेगे।
  

                                            
 

जिंदगी में हमेषा एक सा वक्त नहीं रहता आज दुख है तो कल सुख भी आएगा और इसकी मिसाल ढूंढे तो लाखों मिलेगे। डॉ.कलाम,स्टीव जॉब्स और ऐसे ही कितने लोगों ने असफलता का स्वाद भी चखा लेकिन दोगुनी ऊर्जा के साथ प्रयास किये और आज इनहें हर कोई जानता है। अगर ये लोग भी हार मान लेते तो क्या होता। जो है सब यहीं है फिर न जाने कब इंसान रूप मंे जिंदगी मिले। किसी के लिए हो न हो उस ईष्वर के लिए हम सब अनमोल है जिसने एक अच्छे उद्देष्य के लिए हमें भेजा है।


जूही श्रीवास्तव

3 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

बिलकुल सही और अच्छा आलेख।


सादर

Yashwant R. B. Mathur said...

एक निवेदन
कृपया निम्नानुसार कमेंट बॉक्स मे से वर्ड वैरिफिकेशन को हटा लें।
इससे आपके पाठकों को कमेन्ट देते समय असुविधा नहीं होगी।
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अधिक जानकारी के लिए कृपया निम्न वीडियो देखें-
http://www.youtube.com/watch?v=VPb9XTuompc

धन्यवाद!

The Traditional Mumma said...

thnx Yashwant ji i wll modify it