एक छोटी
बच्ची ने मां
दुर्गा की तस्वीर
देखकर मुझे बताया
कि उनकी बड़ी-बड़ी गुस्से
वाली आंखों से
उसे डर लगता
है। मैनें उसको
मां के सभी
रूपों के बारे
में समझाया कि,
आंखों में तेज
और गुस्सा भी
मां का ही
एक रूप है,
जो बुराई को
खत्म करने के
लिए जरूरी है।
इस पर उसने
बोला कि अब
वो भी हर
बुराई को इसी
गुस्से के साथ
खत्म करेगी। मेरा
यह समझाना उसमें
अक्रामकता को बढ़ावा
देना नहीं था
बल्कि उसके मन
में बसे डर
को खत्म करना
था। आज समाज
में लड़कियों की
जो स्थिति है
उस अन्याय के
खिलाफ बच्चे आज
से ही जागरूक
हो सकें तभी
वो सुरक्षित रह
सकेंगे। हमारे त्योहार और
परम्पराएं भी सच
और साहस का
ही प्रतीक है।
यूं तो महिलाओं
पर अन्याय प्राचीन
काल से ही
होते आये है
लेकिन उन्होनें डट
कर इनका सामना
भी किया है
और कई बार
समाज मंे बड़े
बदलाव किये हैं।
आऐ दिन अखबारों
और किताबों में
नारीषक्ति के किस्से
पढ़ने को मिल
ही जाते हैं।
कुछ महिलाऐं जो
अपराधियों से भिड़
जाती है, तो
कोई किसी रियालिटी
शो की विनर
होती है। इतना
ही नहीं शहर
को भी इन
पर नाज होता
है। कई सक्सेस
स्टोरी सुनकर मुझे भी
कुुछ शेयर करने
का मन किया।
ये सच्ची कहानी
उन महिलाओं की
है जो शायद
अपने मोहल्ले में
भी फेमस नहीं।
फिर भी उनकी
जिंदगी हमें बहुत
कुछ सिखाती है।
इन महिलाओं की
स्क्सेस स्टोरी, इनके जीवन
का अहसास उन
असंख्य समस्याओं से रुबरू
कराता है, जिनसे
आज की महिला
जूझ रही है।
यह महिलाओं के
अंदर बसे हुए
डर और दुःख
के साथ ही
उनके अदम्य साहस
और शक्ति का
गवाह भी है।
पार्किंसन बीमारी से जूझ
रहीं 80 साल की
मिसिज सुल्ताना का
बचपन नाजों से
गुजरा। राजसी खानदान में
जन्म लेने वाली
सुल्ताना ने जो
भी सपना देखा
वो सबने पूरा
किया। प्यार हुआ
और षादी भी
उसी से, मानों
उनके लिए सांतवें
आसमान पर जाने
जैसा था। जिंदगी
हसीन थी, पर
अचानक सब खत्म
हो गया जब
पति की तीस
साल में ही
मौत हो गयी।
दो छोटे बच्चों
को संभालते हुए
पढा़ई षुरू की
और अधिकारी बन
साहस का परिचय
दिया। आज बच्चे
विदेष में सेटेल
हैं और उन्हें
वृद्धाश्रम में छोड़
दिया। आज भी
सुल्ताना को इसका
कोई मलाल नहीं।
वो गाती हैं,
लोगों का खुष
रखती है। बेटे
उनको वापस लेने
आएगंे या नहीं,
उन्हें इसकी फिक्र
नहीं । वो
आज में जीते
हुए हर एक
को प्रेरणा देती
है।
रोज कालेज जाते वक्त
रास्ते में उन्हे
देखना मेरी आदत
थी। सुबह सुबह
एक कुर्सी पर
बैठे ब्रेड बेचना
उनका रोज का
काम था। तीन
सालों में मैनें
उनके साथ किसी
मेल को हेल्प
करते नहीं देखा
हांलाकि उनकी मांग
का सिंदूर बयां
कर देता था
कि वो अकेली
नहीं है। लेकिन
उस दिन वो
कुर्सी छोटी सी
दुकान में बदल
गयी, अब बारिष
से उनका सामान
खराब नहीं होता
है न ही
उनको तेज धूप
सताती थी। मुझे
खुषी इस बात
की थी कि
यह सब उन्होनें
अकेले ही किया
था। अकेले लड़ते
हुए पुरूष प्रभावी
समाज में उनकी
हिम्मत भला तारीफ
के काबिल क्यों
न कही जाए।
एक कामवाली बाई गुड़िया
जिनकी कहानी सुन
कर मुझे अजीब
सा गुस्सा आया
कि एक स्त्री
को भला कोई
इतना अपमानित कैसे
कर सकता है।
15 साल में शादी
होेेकर जब वो
ससुराल गई तो
पति ने दहेज
के नाम पर
प्रताणित किया। बेटा चाहिए
था तो घर
मेें रखा और
उसके बाद धक्के
मार कर घर
से निकाल दिया
गया। तीन साल
मायके में लोगों
के ताने सुन
कर उन्होंने किसी
तरह दिन काटे।
दोबारा षादी हुई
तो एक शराबी
से। यहां भी
बुराई ने उनका
पीछा नहीं छोड़ा।
घर का सारा
काम वो ही
करती है, इसके
बाद भी बाहर
कमाने जाती है।
बच्चों को अच्छी
षिक्षा देना चाहती
है। अब वो
केवल अपने और
बच्चों के लिए
जी रहीं है।
सपना भी यही
है कि जो
उन्होने झेला वो
उनके बच्चे न
झेलें। उनके हिम्मत
और साहस से
अब वो डरने
के बजाय दूसरों
के लिए भी
आवाज़ उठाती है।
उनकी जिंदगी में
आज आंसुओं की
कोई जगह नहीं
है सिर्फ सफल
होने के ख्वाब
है।
ये सभी महिलाएं
भले ही कोई
बड़ा काम नहीं
कर रही पर
समाज तभी बदलता
है जब परिवार
बदलते है। आवाज
उठाने और बदलाव
लाने के लिए
जहदोजहद कर रही
ये महिलाएं परिवार
को संजो रहीं
है और लड़
भी रहीं है।
किताबों में पढ़ने
को तो हमें
कई कहानियां मिल
जाती है लेकिन
कुछ कहानियां सभी
को प्रेरणा देती
हैं। महिलाओं पर
हो रहे अत्याचारों
की बात करे
तो यह खत्म
नहीं होगा पर
एक सच यह
भी है कि
यह सभी अपने
घरों में ही
संघर्ष कर रहीं
है। षादी के
बाद जब एक
लड़की ससुराल जाती
हैं तो उसके
कई अरमान होते
है लेकिन सपने
तब टूटते हैं
जब उसे केवल
एक काम करने
और दहेज लाने
की मषीन समझा
जाता है। वो
सहती है और
घर की ख्ुाषी
के लिए अपना
स्वार्थ भी भूल
जाती है। पर
यह चुप्पी कब
तक ! जिस देष
में माता को
पूजा जाता है
वहीं मां को
गाली देते लोगों
को शर्म नहीं
आती। आए दिन
कई केस सुनने
में आते हैं
जब घर में
ही लड़कियां भाई
,पिता या किसी
और के द्वारा
अपमानित की जाती
है।
लड़कियों के लिए
समानता और हक
की बात करने
वाले कम नहीं
हैं पर बेटियों
को लेकर आज
भी बहुत सी
घटनाएं सुनने में आती
है जो पूरे
तौर पर उसे
बता ही देती
है कि वो
एक लड़की है।
बेटी पैदा हो
तो लोगों के
मुंह बन जाते
है। लोग उसके
पिता से कहते
है कि अभी
से ही दहेज
के लिए बचत
करना शुरू कर
दे। उसके बाद
भी उसे क्या
पहनना और करना
है, यह भी
समाज ही डिसाइड
करता है। शादी
के लिए वैवाहिक
विज्ञापन भी गजब
के होते है-
‘गोरी, लंबी, संुदर कन्या
चाहिए, फिर भले
ही लड़का देखने
में कैसा भी
हो, जब सभी
को सुंदर लड़की
चाहिए तो सामान्य
लड़कियां कहां जाऐं
और तब ही
दहेज से इस
अन्तर को कम
किया जाता है।
और आखिरकार झेलना
लड़की को ही
पड़ता है। शादी
के बाद एक
अच्छी व सुखमय
जिंदगी हर औरत
का सपना होता
है लेकिन समाज
में चल रहे
रीति रिवाजों और
पाखंडो ने शादी
जैसे पवित्र बंधन
को कलंकित कर
दिया है। दहेज
प्रथा, रुढ़ियों और घरेलू
हिंसा का षिकार
महिलाएं आज ससुराल
में कई तरह
से प्रताणित की
जा रही हैं।
ऐसे में जरूरी
है कि अपने
लिए लड़ना हम
स्वयं सीखे। एक
अच्छी षुरूआत घर
से ही होती
है ,अन्याय से
लड़ने के लिए
सबको आगे आना
होगा।
नवरात्र का पर्व
और देवी पूजा
असल मायने में
तब सफल होगी
जब औरत को
सम्मान मिलगा, उसके हिस्से
की आजादी मिलेगी।
कहीं भी जाने
की आजादी कुछ
भी पहनने और
करने की आजादी।
कामना है ये
साहस कभी कम
न हो। अपराध
रूके और लोग
महिलाओं को बराबर
का हक दे।
हम सभी में
एक अदम्य शौर्य
है हम चाहें
तो क्या नहीं
कर सकते। गर्व
करिये नारी होने
पर और उनका
सम्मान करने पर।
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