Wednesday 7 May 2014

अम्मा तेरे घरौंदे की चिड़िया मैं


                                                                                       


Railway station par paayi gyi ek maasoom
आज मैनें पहली सांस ली। यहां मां के अंदर सब कुछ नया है। नऐ लोग नऐ चेहरे लेकिन बहुत सुकून भी है। सब कुछ शांत है। मैं यहां खुद को सुरक्षित महसूस करती हूं। किसी बात की हड़बड़ी नहीं है। घर में कोई नया मेहमान आने वाला है, सबको इसकी बहुत खुषी थी। जो भी आता अपने साथ खाने को अच्छी-अच्छी चीजें भी लाता। मां तो खाना खा-खा कर ही परेषान थी। ऐसे में बहुत ज्यादा केयर मिलती है। मैं सबके सामने तो नहीं थी पर सब कुछ सुन रही थी महसूस कर रही थी। इन नौ महीनों में मैनें बहुत कुछ देखा, सुना, सीखा कई बार डर भी लगा तो कभी रोई भी। मुझे याद है जब एक गैंगरेप के बाद उन दीदी की जान चली गई। क्या-क्या झेला होगा उन्होनें। अपनी मां को कितनी बार पुकारा होगा। सोचा होगा काष बचपन की तरह ही आज भी पापा हाथ थाम पाते। घर की एक-एक चीज को याद कर रही होगी। कहने को कितना कुछ होगा पर बोल नहीं पाई होंगी। अपने पेरेन्ट्स को बताना चाहती होंगी कि वो उनसे कितना प्यार करती हैं, पर जुबान ने साथ ही नहीं दिया होगा। कितना दर्द सहा होगा। जिस बेटी को सबने इतने नाजों से पाला, उनके फूल जैसे नाजुक हाथों को जिसने थामा होगा वहीं आज थोड़ी सी जिंदगी मांग रही है। ऐसा किसी एक के साथ नहीं हुआ, आए दिन हमारे देष में लड़कियों के सपने टूटते हैं और हम कुछ भी नहीं कर पाते। यह सब सुन कर देख कर घर में सब दुखी थे। मां तो और भी ज्यादा दुखी थी। मैं थी ना उनके अंदर, चिंता थी उन्हं, उनकी बेटी यह सब ना देखे। समाज कितना क्रूर हो गया है। जिस समाज में देवी की पूजा करते हैं उन्हें फूल चढ़ाते है, वही लोग जानवर की तरह अपनी बेटियों को रखते है। ऐसी भी क्या सोच हो जाती है कि एक मासूम की जान ले लेते हैं। सच कहूं तो मां चाहती ही नहीं थीं कि मैं बाहर भी आउं। कहीं न कहीं मैं भी।


  आज गांव से दादी आईं हैं, आते ही मां से बोली पोता ही होना चाहिए। मां का मुंह बन गया। कहती भी क्या तानें कौन सुनता उनके। लड़की को कोसने के सौ कारण थे उनके पास और लड़कों की तारीफ को हजार बहाने। मेरा तो मन भी नहीं था, दादी से बात करने का, लेकिन मां ने सिखाया था, सबको रिस्पेक्ट देनी चाहिए। मां का विष्वास था, लड़कियों को सहनषील होना चाहिए। हर बुरी बात और झगड़ा एवाइड करना चाहिए। लड़कियों को तेज आवाज में नही बोलना चाहिए। गुस्सा नहीं करना चाहिए, कुछ बुरा भी लगे तो भी चुप रहना चाहिए। हमारे लिए लाखों नियम बने हैं, पर लड़कों के लिए कोई नियम क्यों नहीं बनाता।      
   मोहल्ले के षर्मा जी को ही देख लो उनका बेटा भी जो मांगता है उसे तुरंत मिल जाता वहीं उनकी बेटी के साथ ऐसा नहीं होता। बच्चों के झगड़े में गलती किसी की भी हो सॉरी हर बार बेटी ही बोलती थी। हमारे समाज मे ऐसे दोहरे नियम क्यों हैं मुझे इसका जवाब नहीं मिल रहा है। आपको पता हो तो जरूर सोचियेगा।
   मेरे बाहर आने का वक्त अब करीब आ गया था। सबको उम्मीद थी बेटा ही होगा। मुझे देखकर तो मानों सबको सांप ही सूंघ गया। मां और बुआ के अलावा कोई खुष भी नहीं था। बे-मन से झूठी बधाइयां दे रहे थे सब एक दूसरे को। मिठाई भी आई थी पर सिर्फ मामूली सी। एक परिवार की उम्मीदें जो टूटी थीं। सारी जिंदगी केयर करनी पड़ती मेरी सच भी तो है आज कल तो हर नजरें बेटियों का खाने दौड़ती हैं। यह नीचता अब मेरे साथ मेरे परिवार को भी झेलनी थी। मैं ये सब सोच ही रही थी, कि अचानक दादी पापा को ताने मारते हुए बोली-‘पैसे बचाना षुरू कर दो अब! पहले इन्हें पढ़ाओ फिर दहेज दो। पूरी जिंदगी का रोना हो गया अब तो।’ मुझे सुन कर बुरा तो नहीं लगा पर तरस जरूर आया, इस देष की हजारों ऐसी दादी पर जो खुद भी एक स्त्री होकर लड़की का सम्मान नही करतीं। सच तो यही है कि भले ही लड़कियां अंतरिक्ष पर पहुंच चुकी हो, ऐवरेस्ट फतेह कर चुकी हो। देष की राष्ट्रपति हो चाहे प्रदेष की मुख्यमंत्री, उनके लिए समाज की सोच कभी नहीं बदलेगी।

कितने ही ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सोचने की जरूरत है, कल को मैं बड़ी होउंगी, पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी करूंगी। पापा का बेटा बन कर दिखाउंगी। सोचा है बहुत कुछ करने को पर ये समाज, ये अच्छा नहीं है। मैनें देखा है जब तीन साल की हीबा को उसके ही चाचा ने रेप करने के बाद जान से मार दिया। ऐसा एक केस नहीं है, आज तो दो साल की बच्चियां भी सयानी हो जाती हैं। क्या यहीं हमें पढ़ाया जाता है? कोई भी धर्म स्त्री का अपमान करने को नहीं कहता बल्कि सब नारी को पूजनीय मानते हैं। फिर हम किस रास्ते पर ले जा रहे हैं समाज को। इतना ही नहीं जैसा दादी ने कहा मेरी षादी को दहेज जुटाना पड़ेगा तो जो आज पापा मुझे पढ़ा लिखा कर कुछ बनाना चाहते है, उसका क्या अस्तित्व रह जाएगा। इतना आगे आ चुके हैं हम तब भी लड़कियों के दाम लगाए जाते हैं। लाखों रूप्ये केवल दहेज के लिए बर्बाद होते है। समझ नहीं आता जिस देष में दो वक्त की रोटी जुटाने में हमारे पेरेन्ट्स अपने सारे सुख को छोड़ देते हैं उसी देष में दहेज जैसी कुरीति आज तक बनी हुई हैं। अगर ष्षादी लड़की की होती है तो लड़के की भी तो होती है। वो जो अपना घर, पेरेन्ट्स सबको छोड़ कर पति के घर जाती है। परिवार के लिए पूरा दिन काम करती है। जब लड़की इतना कुछ करती है तो बीच में पैसे की दीवार क्यो बना रखी है हमने। अगर दहेज देना है तो दोनों को देना चाहिए क्योकि बात बराबरी की है। हमारे देष में सारे नियम कानून लड़कियों के लिए ही क्यों है। कोई लड़कों को क्यों नहीं सिखाता, लड़की की इज्जत करना। उनके साथ अच्छे से बिहेव करना।

Khushiyaa mil hi jati hain
आए दिन रेप होते है, लड़कियां एसिड अटैक का षिकार बनती हैं, तो कही दहेज के लिए प्रताड़ित की जाती हैं। नेता बयानबाजी करते है, कोई कानून नहीं बनता, कोई एफआईआर नहीं होती। केस सालों चलते है और बर्बाद होते है, कितने ही जीवन। हमें ही सोचना पड़ेगा, लड़ना होगा और पूरा सिस्टम सुधारना होगा। एक लड़की जिस्से पूरा घर चहकता है उसकी हंसी सबको खुष करती है। हम आजाद रहना चाहते है, रात में सड़कों पर घूमना चाहते हैं, मनपसंद कपड़े पहनना चाहते हैं, हम उड़ना चाहते हैं। ऐसा कब हो पाऐगा। कब हमारे सपने खुले आकाष में सांस ले पाऐंगें और कब हम भी अपने पेरन्ट्स का सपोर्ट बन पाऐेंगे। मुझे दहेज का सामान नहीं, बेइज्जत करने की चीज नहीं बल्कि एक लड़की के जैसे ही जीना है, बस बेखौफ और आजाद....
-Juhi Srivastava....

15 comments:

The Traditional Mumma said...

Commmnt plzz

Yugantak Raj Gupta said...

mast hai guru
tu hamesha achha hi likhti hai

The Traditional Mumma said...

thanx yugi.humesha to ni but ye meko psnd h

Unknown said...

Woooww...juhi...mind blowing...keep it up...so emotional artical...congrats 'nanhi parii'

Unknown said...

Woooww...juhi...mind blowing...keep it up...so emotional artical...congrats 'nanhi parii'

The Traditional Mumma said...

thnx golu...thku so muchh

Brijesh Kumar Pathak said...

Perfect
Hat's off to the writer n thinker
great emotional article which directly attack on heart n mind........

Unknown said...

Realy so heart touching.... and its realty of our life and our soceity nd their cheep mentality.... well done Jhuhi betu....

The Traditional Mumma said...

Thanku brijesh ji fr giving ur precious tym to my blog...i ll keep writing

The Traditional Mumma said...

thnxx Pooja di :)

LOKChakshu said...
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LOKChakshu said...

This article presents the real mirror of our society and its thinking ..in a very effective way..
May this article help to bring change in mentality ..very nice effort.

LOKChakshu said...
This comment has been removed by the author.
LOKChakshu said...
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The Traditional Mumma said...

Thnx a lot shalini...