Thursday 28 May 2015

जी ले जरा.................

एक बार किसी कंपनी ने अपने क्लाइंट्स के लिए पार्टी रखी, पार्टी में मस्ती के लिए गेम्स भी रखे गए। कुछ पचास से साठ लोगों को गेम के दौरान ही एक कमरे में जा कर, वहां रखे गुब्बारों पर अपना नाम लिखने को कहा गया। सभी लोग बलून पर अपना नाम लिख कर हाॅल में आ गऐ। बाद में फिर मैनेजर ने उन्हें वापस रुम में जाकर अपने नाम वाला बलून ढंूढनें को कहा। इस बार तो रुम में धक्का मुक्की सा माहौल बन गया। सब एक दूसरे से लड़ने लगे। तब मैनेजर ने सभी को शांत कराते हुए कहा कि आप सब एक एक करके रुम में जाए और जिसके भी नाम का गुब्बारा मिले उसका नाम पुकार कर उसे बलून दे। सबने ऐसा ही किया और बारी-बारी से सभी को अपना बलून मिल गया। तब मैनेजर ने कहा कि हम सब इस बलून की तरह ही अपनी खुषियां ढूंढने मंे लगे हैं लेकिन असली खुषी तो दूसरों को उनकी खुषियां ला कर देने में है। वैसे हम सब ही एक दूसरे से काफी अलग है और सभी के लिए खुषियों के मायने भी अलग है उनकी वजह भी अलग है। जो चीज हमारे लिए मामूली हों, ऐसा भी हो सकता है कि किसी के लिए वो चीज ही जिंदगी की सबसे बड़ी जरुरत हो। किसी के लिए घर खरीदना एक सपना है तो किसी के लिए, उसके बच्चों का सेटल हो जाना। जिसका बचपन संघर्षो में बीता हो उसके लिए एक अदद नौकरी भी कम नहीं और जो सड़कों पर जीवन गुजार रहे है, उनके लिए सरकार की किसी आवासीय योजना की घोषणा भर आंखों में चमक ले आती है। इण्डियन खुषियां ढूंढने में कम नहीं है, हर छोटी से छोटी चीज को भी वे एन्ज्वाॅय करना बखूबी जानते हैं। रोड पर जा रहे हो तो बारात को दूर से ही देखकर थिरक लेते हैं। किसी दोस्त का बे्रकअप ही क्यों न हो उसके लिए भी हम पार्टी मांगते है। यूं तो खुषियों को कोई मकसद नहीं होता, कोई कारण भी नहीं होता। खुषी तो बस अपनों का साथ चाहती है, बिजी षिड्यूल से थोड़ा सोषल होना मांगती है।
खुषी का मतलब अच्छा महसूस करना। जब ‘आज मंै ऊपर आसमां नीचे’ या फिर ‘आज मदहोष हुआ जाए रे मेरा मन’ जैसे फिल्मी धुनों पर थिरकने लगे। यही पल भर की खुषियां आज फेसबुक का हिस्सा तो बन ही जाती है और फिर चल निकलता है लाइक्स और कमेंट्स का सिलसिला। लाइफ में अकसर खुषियां सिर्फ हमारी अपनी नहीं होती बल्कि उन दर्जनों लोगों सें भी जुड़ी होती हैं जो अपने हैं। खुषियांे का मतलब और मकसद हर किसी के लिए अलग होता है। कोई सड़क पर गोलगप्पे खा कर खुष होता है तो कोई बारिष में भीग कर। कभी खुषी अपने बच्चे की किलकारी में होती है तो कभी फैमिली की मुस्कुराहट में। इतना ही नहीं अकसर बड़ी-बड़ी खुषियां उन छोटी-छोटी बातों में छिपी होती है जिन्हंे हम कई बार एव्याइड कर जाते हैं। याद करिये लास्ट टाइम आपने पूरा दिन वो हर काम किया था जो आपको पसंद है। कब अपने बिना मम्मी की डांट खाये फुल साउंड में गाने सुने थे और तब जब अच्छा मौसम होने पर आप अकेले लांग ड्राइव पर गये थे। याद करिये वो समय जब अपने परिवार के साथ सुकून के दो पल बिताए हो। पूरे दिन आपकी फैमिली की देखभाल में लगी अपनी वाइफ या मां को एक रोज़ देकर ‘थैंक्स’ बोला था और कब उन्हें मनाने के लिए आंखों में आंसू तक ले आए। लाइफ की यही आरयनी है कि हम वो सब काम करते हैं जो हमारे अपनों को पसंद होता है, हमारी सोसाइटी को मंजूर होता है, पर वो कभी नहीं कर पाते जो हमारा दिल कहता है। भागदौड़ भरी लाइफ में फेसबुक पर तो अपडेट रहते हैं, पर फैमिली से मिलने के लिए हमारे पास समय नहीं होता। अकसर मैनें देखा है हम अपनी लाइफ से अपने पेरेन्ट्स से कंम्पलेन करते हैं कि हम ऐसे क्यांे हैं। हमारे पास वो सब क्यूं नहीं है जो और लोगों के पास है। हम उतने पैसे वाले क्यों नहीं हैं। हम उतने सुंदर क्यों नहीं जितना और लोग होते है। हमारे अंदर इतनी कमियां क्यों हैं। ये नहीं है वो नहीं है और यही सोच कर हम वो नहीं कर पाते जिसके काबिल हम सच में होते हैं।
यूहीं बेतुकी बाते सोचकर हम अपनी सोच को नेगेटिव बना लेते हैं। लेकिन जरा सोचिए तो किसी कम्पटेटिव इक्जाम में सफल न हुए तो क्या कोषिष करना छोड़ देंगे ? नौकरी नहीं मिली या सैलेरी कम है तो काम करना बंद कर देंगे, बिल्कुल भी नहीं। बजाए इसके पहले से ज्यादा मेहनत करेेंगे ताकि मजबूर होकर बाॅस प्रमोट करे। कहीं पढ़ा था कि अगर हम गरीब पैदा हुए तो ये हमारा कसूर नहीं लेकिन अगर गरीब ही दुनिया से रुख्सत हो गऐ तो ये हमारी गलती है। मिस्टर तनेजा डाइबटीज़ के मरीज़ है, जबकि मिठाईयों में उनकी जान बसती है। जब भी मिलते है. तो सभी को खुल कर मिठाई खाने की सलाह देते है। वो कहते है आप लकी हो जो सब कुछ खा सकते हो। उनकी राय सबको ही सोचने पर मजबूर करती है कि जब हम स्वस्थ्य है, सब कुछ कर सकते है, कुछ भी खा सकते है, कहीं भी जा सकते है, हम दौड़ सकते हैं, लाइफ को जी सकते हैं। तब हम क्यों दुखी होते हैं। कल क्या होगा हमें नहीं पता लेकिन जो आज है उसको तो हम जी सकते हैं। आए दिन शहर में मर्डर, स्यूसाइड और रेप की दो या तीन घटनाऐं तो न्यूज पेपर में आती ही हैं और उन्हें करने वाले कोई हिस्ट्रीषीटर नहीं बल्कि हमारे जैसे आम लोग ही होते हैं। क्या वजह होती है कि एक अच्छा खासा इंसान क्रिमिनल एक्टिविटीज़ में इन्वाल्व हो जाता है। लोगों में बढ़ रहा डिप्रेषन अकेलापन और मानसिक तनाव ही इन सबका कारण है। प्रसिद्ध मनोचिकित्सक एरौन बेक कहते हैं कि हमारे अंदर चिंता और डिप्रेषन का सबसे बड़ा कारण यही है कि हम खुद के लिए नेगेटिव हो जाते है और इसकी सबसे बड़ी वजह हम अपने आप को ही मानते हैं। हम हर तरह से खुद को कोसते हैं और पिछड़ते चले जाते हैं। कभी-कभी ऐसे में परिवार और दोस्तों से मिल रहे नेगेटिव कमेंट भी हमें अहसास कराते हैं कि हम कमजोर है। बेक बताते हैं कि इन नेगेटिव थाॅट्स से बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम अपने बेवजह के सवालों के पीछे की सच्चाई व कारण को तलाषे। यह जानने की कोषिष करे कि कब हमनें इससे भी बुरे हालातों से मुकाबला किया था और बच कर निकले थे हर उस समस्या से जो हमें परेषान कर रही थी। दोस्तों ये कांसेप्ट एकदम भी मुष्किल नहीं। हम चाहें तो अपने लाइफ के बेस्ट मूमेंट्स को याद करके किसी भी तरह की नेगेटिव सोच से लड़ सकते है। हम सब ही यूनीक है दूसरों से अलग हैं लेकिन हमारेे अंदर कुछ ऐसे स्पेषल टैलेन्ट्स भी हैं जो और लोगों में न हांे।
आज हम वर्चुअल दुनिया में इतने मगन हैं कि आस पास लोगों से खुषियां बांटना ही भूल जातेे हैं। हमें असली खुषी फेसबुक पर मिले लाइक्स से मिलती है। जरा सोचिए अगर एफबी और व्हाट्सएप न होता तो हम कहां होते, क्या कर रहे होते। अगर डेटा इतनी आसानी से न मिलता, तब भी हम अकेले न होते। कहीं नुक्कड़ पर दोस्तो का झुंड बनाकर मगन होते, पेरेन्टस के साथ सब्ज़ी खरीद रहे होते या मस्ती में गुनगुनाते यूहीं बस चलते चले जा रहे होते। बात केवल इतनी सी है कि हम वो करते ही नहीं जो असल में जरुरी होता है जो काम हमंे खुषी देता है। पल भर को ही सही सोचिएगा जरुर कि प्राॅबलम्स किसके पास नहीं होती, कौन है ऐसा जिसे कोई दुख नहीं, किसको ऊपर वाले ने परफेक्ट बनाया है। अकसर हम दूसरों को देखकर सोचते हैं कि वे कितने सुंदर है संपन्न हैं, और समझदार हैंै। लेकिन कोई दूसरा भी तो हमारे लिए ऐसा सोच सकता है। लाइफ और सिचुएषन सबकी ही अलग अलग है। किसी को रोटी खाना पसंद नही ंतो कोई धूप में खड़े होकर भीख में रोटी ही मांग रहा होता है। जिसके पास गाड़ी है वो उसकी लैविषिंग लाइफ का हिस्सा है दोस्तों के साथ मस्ती करने के लिए जरुरी है तो किसी सेल्समैन के लिए वो ही कमाई का जरिया है। मेरा मकसद ज्ञान देना एकदम भी नहीं है मैं बस यह बताना चाहती हूं कि निराष होने और हार मान लेने से भी एक बेहतर तरीका है, हालातों से लड़ना। रोना तो सबसे आसान है पर आंसुओ को संभाल कर लड़ना भी कुछ कम नहीं। अच्छे नम्बर न आना, या जाॅब न मिलना, ब्रेकअप्स और लड़ाइयां भी जरुरी हैं। जो गिर कर संभलना सिखाती है दोस्तों को पहचानना सिखाती हैं। एक नाकामी से जिंदगी से नाराज रहना सही नहीं होता। खुषियां हमारी झोली में भले ही न हो पर हमारी वजह से कोई जरुर खुष होना चाहिए। और हां, एक बात और दूसरों को खुष करते करते अपने आप को भी नहीं भूलना है। आप ही आपके सबसे इमानदार दोस्त हैं। तो, जस्ट लव एंड लिव फाॅर योर सेल्फ।
Note- All photos are taken frm Google :)

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