Railway station par paayi gyi ek maasoom |
आज गांव से दादी आईं हैं, आते ही मां से बोली पोता ही होना चाहिए। मां का मुंह बन गया। कहती भी क्या तानें कौन सुनता उनके। लड़की को कोसने के सौ कारण थे उनके पास और लड़कों की तारीफ को हजार बहाने। मेरा तो मन भी नहीं था, दादी से बात करने का, लेकिन मां ने सिखाया था, सबको रिस्पेक्ट देनी चाहिए। मां का विष्वास था, लड़कियों को सहनषील होना चाहिए। हर बुरी बात और झगड़ा एवाइड करना चाहिए। लड़कियों को तेज आवाज में नही बोलना चाहिए। गुस्सा नहीं करना चाहिए, कुछ बुरा भी लगे तो भी चुप रहना चाहिए। हमारे लिए लाखों नियम बने हैं, पर लड़कों के लिए कोई नियम क्यों नहीं बनाता।
मोहल्ले के षर्मा जी को ही देख लो उनका बेटा भी जो मांगता है उसे तुरंत मिल जाता वहीं उनकी बेटी के साथ ऐसा नहीं होता। बच्चों के झगड़े में गलती किसी की भी हो सॉरी हर बार बेटी ही बोलती थी। हमारे समाज मे ऐसे दोहरे नियम क्यों हैं मुझे इसका जवाब नहीं मिल रहा है। आपको पता हो तो जरूर सोचियेगा।
मेरे बाहर आने का वक्त अब करीब आ गया था। सबको उम्मीद थी बेटा ही होगा। मुझे देखकर तो मानों सबको सांप ही सूंघ गया। मां और बुआ के अलावा कोई खुष भी नहीं था। बे-मन से झूठी बधाइयां दे रहे थे सब एक दूसरे को। मिठाई भी आई थी पर सिर्फ मामूली सी। एक परिवार की उम्मीदें जो टूटी थीं। सारी जिंदगी केयर करनी पड़ती मेरी सच भी तो है आज कल तो हर नजरें बेटियों का खाने दौड़ती हैं। यह नीचता अब मेरे साथ मेरे परिवार को भी झेलनी थी। मैं ये सब सोच ही रही थी, कि अचानक दादी पापा को ताने मारते हुए बोली-‘पैसे बचाना षुरू कर दो अब! पहले इन्हें पढ़ाओ फिर दहेज दो। पूरी जिंदगी का रोना हो गया अब तो।’ मुझे सुन कर बुरा तो नहीं लगा पर तरस जरूर आया, इस देष की हजारों ऐसी दादी पर जो खुद भी एक स्त्री होकर लड़की का सम्मान नही करतीं। सच तो यही है कि भले ही लड़कियां अंतरिक्ष पर पहुंच चुकी हो, ऐवरेस्ट फतेह कर चुकी हो। देष की राष्ट्रपति हो चाहे प्रदेष की मुख्यमंत्री, उनके लिए समाज की सोच कभी नहीं बदलेगी।
कितने ही ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सोचने की जरूरत है, कल को मैं बड़ी होउंगी, पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी करूंगी। पापा का बेटा बन कर दिखाउंगी। सोचा है बहुत कुछ करने को पर ये समाज, ये अच्छा नहीं है। मैनें देखा है जब तीन साल की हीबा को उसके ही चाचा ने रेप करने के बाद जान से मार दिया। ऐसा एक केस नहीं है, आज तो दो साल की बच्चियां भी सयानी हो जाती हैं। क्या यहीं हमें पढ़ाया जाता है? कोई भी धर्म स्त्री का अपमान करने को नहीं कहता बल्कि सब नारी को पूजनीय मानते हैं। फिर हम किस रास्ते पर ले जा रहे हैं समाज को। इतना ही नहीं जैसा दादी ने कहा मेरी षादी को दहेज जुटाना पड़ेगा तो जो आज पापा मुझे पढ़ा लिखा कर कुछ बनाना चाहते है, उसका क्या अस्तित्व रह जाएगा। इतना आगे आ चुके हैं हम तब भी लड़कियों के दाम लगाए जाते हैं। लाखों रूप्ये केवल दहेज के लिए बर्बाद होते है। समझ नहीं आता जिस देष में दो वक्त की रोटी जुटाने में हमारे पेरेन्ट्स अपने सारे सुख को छोड़ देते हैं उसी देष में दहेज जैसी कुरीति आज तक बनी हुई हैं। अगर ष्षादी लड़की की होती है तो लड़के की भी तो होती है। वो जो अपना घर, पेरेन्ट्स सबको छोड़ कर पति के घर जाती है। परिवार के लिए पूरा दिन काम करती है। जब लड़की इतना कुछ करती है तो बीच में पैसे की दीवार क्यो बना रखी है हमने। अगर दहेज देना है तो दोनों को देना चाहिए क्योकि बात बराबरी की है। हमारे देष में सारे नियम कानून लड़कियों के लिए ही क्यों है। कोई लड़कों को क्यों नहीं सिखाता, लड़की की इज्जत करना। उनके साथ अच्छे से बिहेव करना।
Khushiyaa mil hi jati hain |
-Juhi Srivastava....
Commmnt plzz
ReplyDeletemast hai guru
ReplyDeletetu hamesha achha hi likhti hai
thanx yugi.humesha to ni but ye meko psnd h
DeleteWoooww...juhi...mind blowing...keep it up...so emotional artical...congrats 'nanhi parii'
ReplyDeleteWoooww...juhi...mind blowing...keep it up...so emotional artical...congrats 'nanhi parii'
ReplyDeletethnx golu...thku so muchh
DeletePerfect
ReplyDeleteHat's off to the writer n thinker
great emotional article which directly attack on heart n mind........
Thanku brijesh ji fr giving ur precious tym to my blog...i ll keep writing
DeleteRealy so heart touching.... and its realty of our life and our soceity nd their cheep mentality.... well done Jhuhi betu....
ReplyDeletethnxx Pooja di :)
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ReplyDeleteThis article presents the real mirror of our society and its thinking ..in a very effective way..
ReplyDeleteMay this article help to bring change in mentality ..very nice effort.
Thnx a lot shalini...
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